हिंदी शिक्षण की चुनौतियां-. .(©डॉ. चंद्रकांत तिवारी- उत्तराखंड प्रांत)
शिक्षण एक कलात्मक तरीका है। हर कोई इस कला में पारंगत हो यह संभव नहीं हो सकता परंतु हर व्यक्ति एक दूसरे से शिक्षा प्राप्त करता है और अपने ज्ञान में वृद्धि करता है। शिक्षण के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम का होना भी आवश्यक है तो वही पाठ्यक्रम के विशेषज्ञ के रूप में शिक्षक का होना भी अपने आप में मायने रखता है। शिक्षण की धुरी में शिक्षक और छात्र एक निश्चित पाठ्यक्रम को केंद्र में रखते हुए कक्षा कक्ष शिक्षण को कारगर बनाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम के त्रिकोणात्मक अभीष्ट बिंदु के द्वारा जो परिधि का निर्माण होता है वह एक कलात्मक भवन का निर्माण कर रहा होता है और यह भवन शिक्षा का वह मंदिर है जिसे हम विद्यालय कहते हैं।
बात अगर भाषा शिक्षण की चुनौतियों को केंद्र में रखकर करी जाए तो आज वर्तमान समय में भी कई समस्याओं के साथ-साथ ऐसी विभिन्न चुनौतियां शिक्षक शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम के समक्ष दिखती हैं। जो भौतिक एवं शैक्षणिक चुनौतियों के रूप में हमारे समक्ष प्रकट हो रही हैं इनसे हम अनजान रहकर किनारा नहीं कर सकते क्योंकि यह शिक्षा की दशा और दिशा दोनों ही तय करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
भाषा अध्यापक के समक्ष शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बाधाएं और भाषा एवं साहित्य के प्रति शिक्षार्थियों की रुचि का ना होना और शिक्षण मनोरंजन प्रिय न बन पाना यह शिक्षण को प्रभावित तो करता ही है साथ ही अध्यापक को कक्षा कक्ष शिक्षण को सुचारू रूप से चलाने के लिए निर्धारित मापदंड के तहत अपने ज्ञान में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित करता है।
कुछ चुनौतियां जैसे शिक्षण में स्थानीय एवं मानवतावादी दृष्टिकोण का अभाव, अच्छी पाठ्य पुस्तकों का अभाव, व्याकरण की जटिलता, वर्तनी और लेखन संबंधित त्रुटियों की समस्या, वाचन और उच्चारण संबंधी समस्याएं, शिक्षण की विधियों को लेकर भी कई चुनौतियां समस्या बनकर सामने आती हैं और कक्षा की बनावट और बुनावट और कक्षा का ढांचागत निर्माण भी प्रमुख चुनौतियों में है, तो वहीं छात्र शिक्षक अनुपात और शिक्षक का सूचना तकनीकी के ज्ञान तक न पहुंच पाना भी भाषा की चुनौतियों को बढ़ावा दे रहा है आज हमारा शिक्षक इस 21वीं सदी की महासभा में सूचना तकनीकी से दूर बैठा है और अपनी कक्षा कक्ष शिक्षण में ना ही स्थानीय संसाधनों का प्रयोग कर रहा है और ना शिक्षण शास्त्रीय तकनीकियों को प्रयुक्त कर पा रहा है।
इस प्रकार हिंदी भाषा शिक्षण में कक्षा कक्ष के भीतर जो भी समस्याएं आती हैं वह शिक्षक शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम को प्रभावित करती हैं साथ ही शिक्षार्थी के मूल्यांकन को भी पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं कर पाती हैं।
बहुत सुंदर शब्दों में आपने हिंदी शिक्षण की चुनौतियों से परिचित करवाने का प्रयास किया है ....आपको साधुवाद
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