*विद्यालयी शिक्षा का मूल्यांकन-*इधर भी एक नजर अत्यावश्यक... डॉ चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत
*विद्यालयी शिक्षा का मूल्यांकन-* इधर भी एक नजर अत्यावश्यक...
डॉ चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत
इस कोरोना काल में सबसे अधिक नुकसान हमारे विद्यालय स्तर की शिक्षा को हुआ है। विद्यालय में भी मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर के विद्यार्थी जो पहले से ही पढ़ने में कमजोर थे उनकी शिक्षा व्यवस्था तो पटरी पर आ गई। पर्वतीय क्षेत्रों के विद्यालयों का तो क्या कहना क्योंकि वह भौतिक एवं शैक्षणिक दोनों ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे थे, कोविड-19 महामारी ने तो इसे और बुरी तरह से क्षतिग्रस्त किया। देश में विद्यालयी शिक्षा बहुत विचारणीय बिंदु है। विद्यालयी शिक्षा की बात करते हैं तो मूल्यांकन और प्रश्न पत्र के ढांचे एवं उनके बीच का अंतर स्पष्ट रूप से ज्ञात होना चाहिए। क्योंकि पहले से अधिक प्रतिशत में विद्यार्थी स्कूली शिक्षा में अच्छे अंको से पास हुए हैं। यह तो मूल्यांकन पद्धति पर प्रश्न उठता है। साथ ही विद्यालयी शिक्षा की व्यवस्था को भीतर से खोखला भी करता है।
विद्यार्थियों को अच्छे अंको से पास करना यह मूल्यांकन पद्धति का विचारणीय बिंदु है। हालांकि दूसरी ओर हमारे अध्यापकों ने इस बीच ऑफलाइन और ऑनलाइन के अंतर को भी समझा और डिजिटल की नई दुनिया में प्रवेश भी किया। परंतु यह ऑनलाइन का विकल्प भारत जैसे देश में सभी विद्यालयों में कारगर एवं सटीक रूप से लागू न हो सका। बहुत सारे विद्यालय तो पिछले 2 वर्षों में अधिकांश तो बंद ही रहे। अगर एक आंकलन किया जाए तो कम से कम डेढ़ वर्ष तो पूरी तरह विद्यालय बंद ही रहे हैं। इतने लंबे समय का अंतराल विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक रूप से, शैक्षिक रूप से एवं अकादमिक रूप से एवं पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों एवं उपलब्धियों से भी कमजोर बनाता है। वर्तमान प्रतिस्पर्धा में ऐसे अंको का क्या महत्व रह जाता है। जो बढ़ा-चढ़ाकर विद्यार्थियों को दिए गए हैं।
हमारे देश में तो स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का स्तर एवं उसकी गुणवत्ता का स्तर पहले से ही चिंता का विषय बना हुआ है। इसको कोविड ने और भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। कहीं ना कहीं तो सिस्टम की भी कमी रही है। आनी वाले कुछ वर्षों तक सरकार को अध्यापकों के साथ मिलकर लगातार विद्यालयी शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा। इसके लिए सबसे पहले योग्य अध्यापकों का और सतत एवं सक्रिय उर्जावान शिक्षकों का शिक्षा व्यवस्था में चयन करना होगा। ऐसे अध्यापक जिनको अपना नैतिक कर्तव्य विद्यार्थी के हितार्थ समर्पित करना होगा और शासन- प्रशासन के द्वारा सर्वप्रथम विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था को भौतिक एवं शैक्षणिक संसाधनों की पूर्ति को शत-प्रतिशत सुलभ करना होगा। आईसीटी संबंधी तकनीकी युग में अध्यापकों को निपुण भी बनाना होगा। इसके लिए अध्यापक प्रशिक्षण की भी जिला स्तर पर डाइट, एससीईआरटी, एनसीईआरटी एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में टीचिंग लर्निंग सेंटर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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