विशेष कार्यक्रमों में भाषा का महत्व-- (डॉ चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत)
*(21 फरवरी)-अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की स्मृति* के अवसर पर-
यूनेस्को मातृभाषा को विशेष स्थान देता है। यह 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाता है। (यूनेस्को) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन प्रतिवर्ष 21 फरवरी को भाषाई सांस्कृतिक कार्यक्रम विविधता पूर्ण विषयों के साथ-साथ बहुभाषावाद संबंधी विषयों को भी बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता फैलाने का कार्य भी करता आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा यूनेस्को द्वारा नवंबर 1999 में की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए इस वर्ष अर्थात 2022 का विषय *'बहुभाषी शिक्षण के लिए तकनीकी का प्रयोग- चुनौतियां और अवसर'* रखा गया है। इस बात को कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 से 2032 के बीच की (10 वर्षों की) समयावधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में चिह्नित किया है।
इस बात में कोई भी शक नहीं कि किसी भी देश की शक्ति उसकी भाषा में निहित होती है। अपने देश की भाषा, स्वदेशी, क्षेत्रीय एवं आंचलिक अर्थात मातृभाषा बोलने वालों के क्रियाकलापों-गतिविधियों की सतत, संवेदनाओं में निहित होती हैं। जो देश अपनी भाषा का सम्मान करता है, वही देश अपनी भाषा की जीवंतता को भी वास्तविक स्तर पर आत्मसात करता है। वह राष्ट्र अपनी जड़ों से हमेशा जुड़ाव महसूस करते हुए अपने पैतृक स्थान से पलायन नहीं करता अपितु अपनी बोली के साथ-साथ अपने लोगों को भी प्रेम करता है। यह प्रेम अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पण के भाव रखने का एकमात्र विकल्प दर्शाता है। वह राष्ट्र सर्वशक्तिमान होता है जो अपनी मिट्टी से गहराई से भावात्मक स्तर पर जुड़ा हुआ होता है। ऐसा राष्ट्र हमेशा मातृभूमि की लड़ाई अपनी मातृभाषा में लड़ने का सामर्थ्य रखता है। सच्चा मातृभाषी-राष्ट्रवादी-राष्ट्रभक्त-राष्ट्रसैनिक जब दुश्मन पर अपनी तलवार से प्रहार करता है तो वह पहला प्रहार मातृभूमि की रक्षा के लिए मातृभाषा द्वारा ही करता है। उसकी मातृभाषा द्वारा किया गया कार्य जोश एवं उत्साह से भरपूर शक्ति से संपन्न होता है। मातृभाषा द्वारा किया गया यह प्रहार और कर्तव्य-पाठ का पुनर्पाठ, स्वराष्ट्र की विजयश्री का जयघोष स्थापित करने वाला, शंखनाद की भांति कीर्तिश्री का विजय स्तंभ स्थापित करता है। मातृभाषा की शक्ति और सामर्थ्य अतुलनीय है। अपनी भाषा के प्रति प्रेम, सद्भाव, अपनत्व, सम्मान और समर्पण का भाव ऐसा हो कि जिस तरह जड़ों का मिट्टी से और हिमालय का नदियों से लगाव होता है। मातृभाषा के पुष्प का आदर और व्यावहारिक स्तर पर जीवंतता, शिक्षण स्तर पर प्रयोजनमूलकता एवं रोजगार के अवसर अन्य भाषा से अलगाव करके नहीं अपितु सद्भाव की भावना के साथ, अपनी मातृभाषा को विकसित और पल्लवित-पुष्पित करके प्राप्त किया जा सकता है।
वर्तमान में हिंदी भाषा शिक्षण की समस्याएं/ चुनौतियां--
1-उद्देश्य प्राप्ति में बाधाएं
2-हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति अभिरुचि का अभाव
3-हिंदी शिक्षण, स्थानीयता और मानवतावादी दृष्टिकोण का अभाव
4-अच्छी पाठ्य पुस्तकों का पाठ्यक्रम में अभाव
5-व्याकरण की जटिलताएं
6-वर्तनी और लेखन संबंधी त्रुटियों की समस्या
7-वाचन और उच्चारण संबंधी समस्याएं
8-शिक्षण विधियों को लेकर समस्याएं
9-भाषा शिक्षण में आईसीटी की समस्याएं
10-कक्षा की बनावट की समस्याएं
11-छात्र शिक्षक अनुपात की समस्याएं
12-स्थानीय संसाधनों की समस्याएं
13-शिक्षा तकनीकी की समस्या
14-आधुनिक संसाधनों में शिक्षकों का प्रशिक्षित न होना
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