भाषा, समाज, संस्कृति और मानवीय सरोकार -*
{स्वलेखन )-
रविवार 4 जून 2023
©डॉ चंद्रकांत तिवारी
उत्तराखंड प्रांत
भाषा स्वप्रेरणा, स्वअनुशासित और आत्मसंस्कारित प्रेरणा को प्रदान करने वाली आत्मिक चेतना जो मां, मातृभूमि और मातृभाषा से अनुशासित होते हुए संगठन की विकास यात्रा में सहायक होती है का सदा आवाह्न करते हुए विषम परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहकर राष्ट्र के लिए सर्वस्व निछावर करने के भाव प्रेरणा देती है -
निम्नलिखित पंक्तियों की तरह आत्मसंस्कारित करती है--
(कवि रामधारी सिंह दिनकर )
लोहे के पेड़ हरे होंगे
तू गान प्रेम का गाता चल
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर
आंँसू के कण बरसाता चल।
साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है और साहित्य समाज का दर्पण भी है। साहित्य जनता की चित्तवृत्ति का संचित कोष है तो साहित्य प्रत्येक व्यक्ति की भावना का भावात्मक विकास भी है। भारतवर्ष की नींव में राष्ट्रवाद मजबूत आधार लिए हुए है। यही राष्ट्रवाद व्यक्ति को समाज से, व्यक्ति को राष्ट्र से, उसकी मूलभूत आवश्यकताओं से जोड़ता है। साहित्यकार समाज के विभिन्न वर्गों से, संप्रदायों से जो भावनाओं को लेकर अपने साहित्य का सृजन करता है वही कवि या साहित्यकार समाज का सच्चा हितैषी बन जाता है और उसके द्वारा रचा गया साहित्य पूरे समाज की उन्नति का, प्रगति का मील का पत्थर साबित होता है। भारत की संवैधानिक रूप से विभिन्न भाषाओं में लिखा गया साहित्य भारत और विश्व स्तर पर भारतीय समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सभी कारकों को प्रभावित करते हुए भारत की महिमा का गुणगान करता है। हिंदी साहित्य के इतिहास का स्वर्ण युग भक्ति काल को कहा गया। जिस युग में कबीर, जायसी, सूर और तुलसी जैसे कवि हुए वह युग स्वर्ण युग कहलाया। संत साहित्य, निर्गुण और सगुण परंपरा, राम काव्य, कृष्ण काव्य, अष्टछाप के कवियों द्वारा लिखा गया काव्य साहित्य की अमूल्य निधि है।
हिंदी साहित्य के इतिहास का आधुनिक काल विभिन्न संदर्भों को लेकर सामने आया। भारतेंदु युग, दिवेदी युग, छायावाद युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग, नई कविता और नई कविता की विभिन्न धाराओं में बहने वाला अमृत मय काव्य में असंख्य स्रोत और नवगीत की परंपरा आदि के अजस्र स्रोत में बहने वाली साहित्यिक धारा भारत की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना और उसकी राष्ट्रवादी भावना को निरंतर विकसित और पल्लवित पुष्पित करती हुई एक सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा और सजीव आकार देती है।
अधिकांश भारतीय संस्कृति पर हिन्दू साहित्य परम्परा का प्रभाव है। वेदों के अलावा, जो कि एक धार्मिक ग्रंथ है, हिन्दू साहित्य की कई अन्य कृतियाँ हैं जैसे कि हिन्दू महाकाव्य रामायण और महाभारत, भवन-निर्माण और नगर आयोजना में वास्तुशिल्प तथा राजनीतिविज्ञान में अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ। संस्कृत की सर्वाधिक प्रसिद्ध हिन्दू कृतियां वेद, उपनिषद और मनुस्मृति हैं।
अन्य महान साहित्यिक रचनाएं जिनसे भारतीय साहित्य के स्वर्ण युग का निर्माण हुआ, कालीदास की 'अभिज्ञान शकुन्तलम' और 'मेघदूत', शुद्रक की 'मृच्छकटिकम' भास की 'स्वप्न वासवदत्ता' और श्री हर्ष की द्वारा रचित 'रत्नावली' है। अन्य प्रसिद्ध कृतियां चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र और वात्स्यायन का 'कामसूत्र' है।
रामायण और महाभारत संस्कृत भाषा के ऐसे महान ग्रन्थ हैं, जिन पर भारत की बहुत बड़ी साहित्यिक सम्पदा आश्रित है। ये दोनों ग्रन्थ वैदिक और लौकिक साहित्य के सन्धि काल में लिखे गए। भारतीय जन-जीवन पर रामायण और महाभारत का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
भारत की सांस्कृतिक परंपरा की पृष्ठभूमि की नींव में भारतीयता विद्यमान है। भाषा, साहित्य और संस्कृति किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। यह राष्ट्र को नींव के पत्थर की तरह मजबूत आधार प्रदान करती है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा प्रत्येक हृदय में राष्ट्रवादी भावनाओं को लेकर निर्मित होती रही है और होती रहेगी। यह संस्कृति हमें राष्ट्र की मिट्टी से जोड़ती है। और जो समाज मिट्टी की सुगंध से निर्मित होता है वही अपने राष्ट्र से प्रेम करता है।उसकी संस्कृति वर्षों तक वैश्विक स्तर पर गूंजती है।
प्राचीन समय से ही, भारत की आध्यात्मिक भूमि ने संस्कृति धर्म, जाति, भाषा इत्यादि विविध आयामों को प्रदर्शित किया है। जाति, संस्कृति, धर्म इत्यादि की यह विभिन्नता अलग-अलग धर्मों और सम्प्रदायों, जातीय वर्गों, के अस्तित्व की गवाही देती है, जो यद्यपि एक राष्ट्र को नियंत्रित करती है। भारत की आंतरिक विभिन्न बोलियां, क्षेत्रीय सीमाएं, इन जातीय वर्गों, संस्कृतियों, परिवेश को उनकी अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान के आधार पर भेद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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