"थलीसैंण" - स्वरचित कविता - डॉ. चंद्रकांत तिवारी - स्वरचित कविता -
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पौड़ी - गढ़वाल-उत्तराखंड प्रांत
सुबह हो गई भोर तिलक-सा
प्रखर-रश्मियां स्वेत वसन-सा
मस्तक उज्ज्वल यश गाता है
विश्व मुकुट-सा हिमसागर सेमल
हिम-देवालय हेमल चमकाता है।
सिंधु धरा-सा दक्षिण सागर
उत्तर विश्व हिमालय सागर
मध्य हिमालय का रचना खंड
दिव्य भाल-सा उत्तराखंड।
बहती नदियों की जल धारा
करती कल-कल गंगा धारा
मानस -केदार की मीठी बोली
निर्झर-सी बहती दूधातोली।
दिव्य शिलाओं की चोटी से सूरज की किरणें अभिसार हुई
थलीसैंण के प्रांगण में मां सरस्वती की तान हुई
गूंँज उठी देवभूमि की धरती
पावन किरणें मनुहार हुई
ऊंँची पावन शीला पर दीबा देवी मंदिर की जयकार हुई ।
उर्मि रश्मियां धीरे-धीरे चौरीखाल से आती हैं
शांत तिमिर-घाटी थलीसैंण को
पलभर में चमकाती हैं
ऊंँचे-अडिग चीड़ों के वैभव
देवदार की हरियाली
प्रहरी भूतल - गवाक्ष खड़े
निज प्रतिनिधि बीजों से बढ़े
श्वेत हिम शिखरों की लाली
वसुधा बहती-पूर्वी न्यार
लहराती हरियाली खेतों में बाली
कंठ-शीतल कल-कल मृदु-मनुहार
क्षितिज परिधि थलीसैंण साकार
अपनी गंगा -पूर्वी न्यार ।
ऊंँचे पर्वत गांँव- गंगा की धार
हिमालय के गांँव ईगास-बग्वाल
थलीसैंण की घाटी-पौड़ी गढ़वाल
दूधातोली पर्वत की सांँझ निराली
बाघों के जंगल बांँझ-वृक्ष हरियाली
सड़कें छोटी सर्पीली - बर्फीली धार
पुण्य मिले यहांँ दीवा देवी बारंबार ।
हंसेश्वर-बिंदेश्वर शिव प्रदेश परिधि में मिलता
थलीसैंण की घाटी में किरण सूर्य-सा खिलता
दिव्य हिमालय की यह गाथा
ज्ञान मनोहर की अभिलाषा
कंकड़ कंकड़ यश गाता है
पर्वत का मानस पुत्र यहांँ
श्रम कण का बरसाता है
हे दिव्य हिमालय तेरी धरती
निज कोना-कोना गाता है
थलीसैंण की घाटी में
सूर्य-कमल दल खिलता है
चौरीखाल के जंगल में
बाघों का डेरा मिलता है
असंख्य खग कुल का वैभव यहांँ
निज दिव्य हिमालय ढलता है
सेमल-सा हेमलता हिम शिखरों का जल
जब धरा वसन मुख भरता है ।
है प्रखर ज्योति की उज्ज्वल आभा
नदियों की कलकल धारा
यह दुधातोली की पर्वतमाला
झरने का कलरव गाता है
थलीसैंण की घाटी-पौड़ी में
किरण सूर्य-दल खिलता है।
पावन रज किरणों का रथ
जब धीरे-धीरे आता है
थलीसैंण का दिव्य भाल
धीरे-धीरे चमकाता है।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की यश गाथा है
मध्य हिमालय का भूखंड थलीसैंण कहलाता है।
ऊंँचे ऊंँचे शैल खंड वीरों का मस्तक ऊंँचा करते
कलकल बहती नदियांँ तन शीतल मन हरते।
मातृभूमि-पुण्यभूमि तेरी जय हो
थलीसैंण यश गायेगा
विवेक-ज्ञान, यश-वैभव का
सूर्य हिमालय लायेगा।
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