*क्या अनिवार्य मिलिट्री सेवा से सेना का हित होगा ? पक्ष और विपक्ष*
©डॉ.चंद्रकांत तिवारी
*पक्ष-*
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
देश सेवा के भाव क्या होते हैं कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी की उपर्युक्त कविता पुष्प की अभिलाषा से प्रकट होता है।
भारतवर्ष की गौरव गाथा, यहां की सेना के जवानों की कार्यकुशलता वीरता से भरी पड़ी है। देश सेवा, राष्ट्रवाद और अनुशासन भारतीय सेना का मूल मंत्र है। विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिकों की कार्यकुशलता, साहस और मनोबल का विश्व स्तर पर सम्मान होता आया है। अगर हमें कुशल नेतृत्व मिल जाए तो हम विश्वविजय की दिशा में होंगे और यह सब हमारे देश के युवाओं की बदौलत संभव है।
गांव की सड़कों से दौड़ता हुआ भारत का युवा सेना में आकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है कि वह सेना का अभिन्न अंग है। उसकी वर्दी के सितारे उसकी किस्मत के सितारों से भी बढ़कर होते हैं। वह उनकी चमक कभी कम नहीं होने देता है। सांसे थम जाएं तो क्या? रक्त जम जाए तो क्या? फिर भी सेना का जवान कर्तव्य पथ पर अपने प्राणों की बाजी लगा देगा। ऐसे रणबांकुरे, धुरंधर योद्धाओं की जीत हमेशा पथ चूमती है। बुरा वक्त भी ऐसे जांबाज योद्धाओं के जीवन में यश लेकर आता है। वीरता की कुछ ऐसी परिभाषा भारतीय सेना के जांबाज योद्धा रणक्षेत्र में देते हैं।
"जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं, वह पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।"
कवि गया प्रसाद शुक्ल 'स्नेही' जी की यह पंक्ति स्वदेश प्रेम और राष्ट्रप्रेम को दर्शाती है। राष्ट्रवाद की इससे सच्ची परिभाषा और क्या हो सकती है कि सेना स्वयं राष्ट्रभक्ति का स्वर्णिम मौका दे रही है।
आज देश का हर कोई युवा भारतीय सेना का अंग बनना चाहता है और इस वर्दी की चाह को पूर्ण करना चाहता है। देश सेवा के लिए भारतीय सेना में आकर तन-मन से राष्ट्र को समर्पित होता है। आज हमारी सरकार युवाओं के सपनों को पूरा करने के लिए और सेना को युवा सैन्य बल प्रदान करने के लिए प्रयासरत है। इसी व्यवस्था के तहत 'टूर टू ड्यूटी' का विकल्प लेकर देश की सरकार रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर भारतीय सेना में नए जोशीले रणबांकुरों की फ़ौज को कर्तव्य की नई दिशा और राष्ट्रवाद की परिभाषा सिखाने के लिए वचनबद्ध है और एक मजबूत आधार प्रदान करना चाहती है।
देश की हर मां अपने बेटे के बदन पर सेना की वर्दी देखना चाहती है। जब एक बूढ़ी मां अपने बेटे को देश की रक्षा के लिए घर से विदा करती है तो वह कहती है! जा बेटे.. कर्तव्य पथ पर.. भारत मां की रक्षा के लिए अगर प्राणों का भी उत्सर्ग करना पड़े तो कभी पीछे मत हटना बेटा.. हमेशा आगे बढ़ते जाना। मां से किए वादे को पूर्ण करने के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए देश का युवा, सेना में आने के लिए, सेना के तौर तरीके सीखने के लिए, अपना खून पसीना एक कर देता है और भारतीय सेना का अभिन्न अंग बन कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है कुछ इस प्रकार का है हमारे देश का युवा रक्त। जिसकी धमनियों में रक्त का तूफान एक सैलाब बनकर उमड़ रहा है। सेना का कुशल नेतृत्व और अनुशासित वातावरण ऐसे सैलाब को नई दिशा और गति देगा। यह सेना के लिए भी गौरव की बात है।
परंतु कुछ लोगों को इस बात से आपत्ति है कि अगर अनिवार्य सैन्य सेवा विकल्प को भारत की सेना का अंग बना लिया जाएगा तो इससे हमारी सेना कमजोर पड़ जाएगी। क्योंकि 3 वर्ष का समय (शॉर्ट सर्विस) काफी कम है। परंतु महोदय ऐसे लोगों को मैं यह बता देना चाहता हूं कि भारतीय सेना में कार्य करने के लिए 1 दिन भी अपने आप में बहुत बड़ी अवधि है। भारत जैसे देश जहां बेरोजगारी का ग्राफ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, योग्यता और काबिलियत सड़कों पर बेरोजगार घूम रही है। ऐसे में कम से कम तीन वर्ष के लिए भारतीय सेना में युवाओं को नौकरी देना और उनको सैनिक गतिविधियों का प्रशिक्षण देकर देश को वैश्विक स्तर पर एक नई दिशा देना अपने आप में प्रभावी, कारगर, सटीक एवं प्रभावपूर्ण शुभ संकेत हैं। जिस पर तुरंत कार्य होना चाहिए। इससे हमारे देश को और हमारी सेना को फायदा ही होगा। कोई नुकसान नहीं होगा।
प्रशिक्षण किसी भी साधारण व्यक्ति को असाधारण बना सकता है। मैं यह मानता हूं कि पेशेवर सैनिक ज्यादा कारगर एवं प्रभावी, सटीक एवं कुशल नेतृत्व, रणकौशल में पूर्ण होता है। परंतु 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' के अंतर्गत भी प्रवेश लेने वाला अधिकारी या जवान प्रशिक्षित, अनुशासित वीरता और विवेक को धारण करने वाला ही होगा। क्योंकि देश के युवाओं को आर्मी से जोड़ने का यह सुनहरा अवसर है। अभी यह व्यवस्था प्रारंभिक चरण में ही है। इस व्यवस्था से धीरे-धीरे संपूर्ण राष्ट्र में देशभक्त, देशभक्ति और राष्ट्रवाद का उदय होगा। यह व्यवस्था नए वॉलिंटियर्स को जन्म देगी। जिससे भविष्य का राष्ट्र, हमारा भारतवर्ष अपनी प्राचीन गौरवमयी परंपरा का अनुसरण करेगा। वर्दी की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए भी यह क्षेत्र नए विकल्पों को लेकर आएगा 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' के अंतर्गत 3 वर्ष के कार्यकाल में 9 महीने की मिलिट्री ट्रेनिंग के साथ-साथ प्रवेश परीक्षा और मानसिक एवं शारीरिक मापदंड पहले जैसे ही रहेंगे इस बात से तो कोई समझौता नहीं किया गया है।
इसका सकारात्मक पहलू यह रहेगा कि सेना का पैसा बच जाएगा। जैसे ग्रेच्युटी पेंशन नहीं मिलेगी। अभी वर्तमान में 10 साल में अधिकारी पर कम से कम 5 करोड़ रूपये खर्च आता है। और 14 वर्ष तक जो अधिकारी सेना में कार्य करता है एक अनुमान के तहत 7 करोड़ रूपये उस पर खर्च होते हैं। परंतु अब यह मात्र 3 वर्ष में अगर 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' के अंतर्गत 'टूर आफ ड्यूटी' 'शॉर्ट सर्विस' विकल्प को अपनाया जाता है तो केवल 85 लाख में 3 साल के लिए सेवा ली जा सकती है। इसका एक लाभ यह होगा कि अगर पैसा बचेगा तो वह सेना के अन्य संसाधनों में प्रयोग किया जाएगा। अभी व्यवस्था प्राथमिक चरण में ही है। जिसमें 100 अधिकारी और 1000 जवान प्रारंभिक व्यवस्था को स्थाई धरातल प्रदान करेंगे।
हमें इजराइल, रूस, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, ग्रीस, स्विजरलैंड, तुर्की, ईरान, क्यूबा, नार्वे आदि देशों से सीखना चाहिए। यहां पुरुष ही नहीं बल्कि महिला भी अनिवार्य रूप से सैन्य सेवा के लिए समर्पित हैं। यहां भी मात्र निश्चित समय के लिए ही जिसमें 1 वर्ष या फिर 2 वर्ष तक 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' दी जाती है। महोदय प्रत्येक देश की भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था उस देश की सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप ही होती है। परंतु हम विकसित राष्ट्र का चोला पहनकर वास्तविकता से तो मुंह नहीं मोड़ सकते और वास्तविकता यही है कि हमें समय के साथ चलना चाहिए। वैसे भी महोदय युद्ध हमेशा ही नहीं होते। फिर भी हमें हमेशा युद्ध की तैयारियों के अनुरूप व्यवस्था और अभ्यास को बनाए रखना चाहिए। यह भी एक कटु सत्य है कि युद्ध से बढ़कर भी देश की व्यवस्था को बनाना और सामाजिक एवं मानवीय प्रबंधन स्थापित करना है। देश को चलाना यह बात भी अपने आप में महत्वपूर्ण है।
कुछ आलोचक धार्मिक, वैचारिक वह राजनीतिक रूप से 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' विकल्प को लेकर परेशान नजर आ रहे हैं। ऐसे लोगों को मैं यह कहना चाहता हूं कि भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत के मूल में राष्ट्रवाद निहित है। यहां सब धर्मों से बढ़कर राष्ट्रवाद का सूरज चमकता है। यहां सूर्य की पहली किरण जब हिमालय पर्वत पर पड़ती है तो उसके प्रकाश से संपूर्ण भारतवर्ष उज्जवल सितारे की तरह चमकता है। ऐसे में भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बन जाता है कि देश की सुरक्षा वह इस प्रकार करे जैसे वह अपने घर की सुरक्षा करता हो।
यह देश भारत के प्रत्येक युवा के सपनों का देश है। इसलिए इस देश के विकास और प्रगति के लिए और रक्षा सुरक्षा के लिए सभी की सहभागिता अत्यावश्यक है। देश के युवाओं से अपेक्षा अधिक है। इतिहास इस बात का गवाह है कि कई विदेशी आक्रांता हमारे देश में आतंक के मकसद से आए और हमें नुकसान पहुंचाया। हमारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। अगर हमारी सुरक्षा व्यवस्था और एकता बनी रहती तो हम अंग्रेजों के गुलाम न होते। हम भारतीयों ने उपनिवेशवाद की लंबी यात्रा के बाद अपनी निजी विकास की यात्रा स्थापित की है। इसलिए हम सब का परम कर्तव्य बनता है कि समाज और देश के विकास में, मानवता के विकास के लिए कोई भी छोटा या बड़ा कार्य हो, उसमें प्रत्येक नागरिक का अंशदान होना चाहिए। भारत सभी धर्मों का देश है और राष्ट्र की प्रगति, उन्नति, सुरक्षा के लिए मानवता सबसे बड़ा धर्म है। मानवता की रक्षा के लिए 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' विकल्प बहुत जरूरी है। भारत का प्रत्येक नागरिक प्रशिक्षित और सैन्य क्षमताओं से पूर्ण प्रशिक्षित हो ऐसी व्यवस्था को जमीनी स्तर पर उतारने की योजना का स्वागत करना चाहिए।
कुछ आलोचकों द्वारा यह कहा जा रहा है कि अनिवार्य मिलिट्री सेवा के लिए 'समय बहुत कम है।' परंतु यह उतना महत्वपूर्ण नहीं कम समय में भी देश का युवा सेना को शत प्रतिशत योगदान दे सकता है। यह तो कार्यशैली पर निर्भर करता है कि किस तरह कम समय में सटीक एवं प्रभावपूर्ण नेतृत्व द्वारा देशहित के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कार्य को पूर्ण किया जा सकता है। कम समय में अधिक से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित करके देश सेवा के प्रति समर्पण का भाव जागृत हो सके यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह भविष्य का शुभ संकेत है। इससे सेना का तो हित होगा ही साथ ही देश का, देशवासियों का भी हित संभव है।
हम भारतीयों ने उपनिवेशवाद की लंबी यात्रा के बाद अपनी निजी विकास यात्रा प्रारंभ की है। भारत विविधता में एकता, वसुधैव कुटुंबकम, सर्वधर्म समभाव की नीति अपनाने वाला राष्ट्र है, यहां मानवता श्रेष्ठ धर्म है।
दुश्मन राष्ट्र हमारी सरहद पर बैठा है। अनिवार्य मिलिट्री सेवा के विकल्प पर अगर अभी भी कोई तटस्थ रहता है तो वह अपराधी है।
'क्योंकि समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध।'
*क्या अनिवार्य मिलिट्री सेवा से सेना का हित होगा ? विपक्ष-*
'यह गहन प्रश्न है कैसे रहस्य बताऊं
पेशेवर सेना के गीत कैसे-कैसे बतलाऊं
यहां सरहद पर खून की होली होती है
आंसुओं से भीगा दामन और चोली होती है।'
यह कैसी विडंबना है? अनिवार्यता का कैसा यक्ष प्रश्न है? क्या यह बैठी हुई डाल को काटने के सामान न होगा? यह तो स्वयं के पैर को कुल्हाड़ी पर मारने के समान है। स्वरचित पंक्तियों के माध्यम से मैं अपनी बात कहना चाहता हूं कि बालक अगर अंगारों से खेलना चाहे तो उसे यह करने नहीं दिया जाता। हाथ बढ़ाकर आसमान के तारे नहीं तोड़े जाते हैं। हर लक्ष्य तक विजय प्राप्त करने के लिए एक कुशल रणनीति का होना अति आवश्यक है। और कुशल रणनीति के लिए अभ्यास के साथ-साथ समय की भी जरूरत होती है। कम समय में पेड़ की जड़े भी मजबूत नहीं होती और ना ही उसकी शाखाएं उतनी परिपक्व हो पाती हैं। जितनी कि हम उस पेड़ से अपेक्षाएं रखते हैं। कच्ची मिट्टी का घड़ा भी अधिक देर तक जल को संचित नहीं रख सकता है। जिन पत्थरों का एक निश्चित आकार नहीं होता वह नदी के बहाव की दिशा में बह जाते हैं। ऊंची इमारत बनाने में नींव के पत्थरों को भी समय देकर तराशा जाता है। छैनी और हथौड़े की एक-एक चोट से उसके आकार को साकार किया जाता है। तब जाकर एक मजबूत इमारत खड़ी होती है।
ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी है उसको भी वस्तुओं को सीखने में समय लगता है। जल्दबाजी में किया गया कार्य हमेशा गलत परिणाम ही देता है। क्रोध में मीठी बात भी बुरी लगती है महोदय। कार्य की सफलता उसके उद्देश्यों में ही निहित होती है।
निश्चित अवधि के लिए सेना के द्वार नहीं खोले जा सकते। यहां इनकमिंग समर्पण, देश सेवा, राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और भारत माता की जय से प्रारंभ होती है और जब एक सैनिक की आउटगोइंग होती है तो वह तिरंगे का दामन लपेट कर, परम विजयी होकर परमवीर चक्र विजेता कहलाता है।
आज अनिवार्य मिलिट्री सेवा की जो बातें चल रही हैं इसमें सेना का विशेष हित नहीं दिखता। यह एक बिना उद्देश्य की योजना है। क्या पैसा बचाना उद्देश्य है? या एक कुशल सेना का गठन करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए? यह सोचने की बात है महोदय हम देश की सुरक्षा व्यवस्था से कोई समझौता नहीं कर सकते सरकार जो 'टूर आफ ड्यूटी' के विकल्प के साथ 'अनिवार्य सैन्य सेवा' को लेकर प्रस्ताव रख रही है यह अकुशल लोगों को सेना में प्रवेश दिलाकर सेना को कमजोर करने वाली बात होगी।
अनिवार्य मिलिट्री सेवा के नाम पर देश के युवाओं को मात्र 3 वर्ष सेना में प्रवेश दिला कर क्या हम एक मजबूत सेना का गठन कर पाएंगे?
'टूर आफ ड्यूटी' के विकल्प को अपनाकर हम क्या पूर्ण रूप से प्रशिक्षित सेना का निर्माण कर पाएंगे?
मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि भारतीय सेना कोई टूरिस्ट प्लेस नहीं है कि यहां तीन वर्ष आओ और जाओ..! सेना की रणनीति को समझने के लिए 3 वर्ष का समय ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
यूनिट में आकर ऑफिसर्स और सेना के जवान को कई कोर्स करने होते हैं। जैसे 'यंग ऑफिसर्स कोर्स' समय-समय पर कराए जाते हैं। केवल अकादमी में ही ट्रेनिंग नहीं होती है। अकुशल व्यक्ति को सेना में कम समय के लिए रखना एकदम खतरे का काम है। अनिवार्य मिलिट्री सेवा से तो बेहतर यह होगा कि वर्तमान में जो अधिकारी हैं उनसे ही काम लिया जाए या फिर नए पदों को भरने के लिए अधिक से अधिक विज्ञप्तियां निकाली जाएं।
वर्तमान सेना की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य स्तर, जिला स्तर, तहसील स्तर, ब्लॉक स्तर, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय या फिर विद्यालय स्तर पर भर्ती रैली का आयोजन किया जाए। साथ ही विद्यालयी शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय शिक्षा तक रक्षा- सुरक्षा, डिफ़ेंस स्टडीज एवं मेकैनिज्म अनिवार्य विषय को पाठ्यक्रम के केंद्र में लाया जाए। मानसिक और शारीरिक रूप से युवाओं को मजबूत बनाने के लिए योगाभ्यास को अनिवार्य किया जाए। NCC और NSS से सहयोग लिया जाए। शिक्षा, चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के भाव पैदा किए जाएं। राष्ट्र सेवा के लिए उपर्युक्त तीनों विषयों में कई क्षेत्र खुले हैं। युवाओं को बस दिशा देने की देर है। देश में NCC और NSS की इतनी शाखाएं हैं कि यहां काम करने वाले वॉलिंटियर्स को सेना की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है। अगर देशभक्ति, राष्ट्रवाद, देश सेवा की बात है तो मात्र 3 वर्ष के लिए ही क्यों ? या कम समय के लिए ही क्यों ? कम से कम 10 वर्ष या उससे अधिक क्यों नहीं?
अगर हम इजराइल, रूस, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, नार्वे, स्विजरलैंड, तुर्की, ग्रीस, ईरान या क्यूबा जैसे देशों से अगर हम अपनी तुलना करने की सोच रहे हैं तो अनिवार्य सेना के विकल्प वाली बात समझ से परे है। भारत एक विकसित राष्ट्र नहीं है। हमारा देश अभी विकास कर रहा है। हमारा सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिवेश हमें इस बात की इजाज़त नहीं देता कि हम सैन्य संसाधनों एवं सुरक्षा चक्रों की गोपनीयता को समाज के समक्ष लाकर अनिवार्य सैन्य विकल्प को प्रस्तुत करते हुए रक्षा सूत्रों को सांझा कर दें।
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के साथ हमारे हालात नहीं बदले, आए दिन टकराव होता रहता है क्या ऐसे समय में सेना के ढांचे में बदलाव करना ठीक रहेगा? क्या यह रक्षा बजट बचाने के लिए देश की सुरक्षा व्यवस्था से समझौता तो नहीं? सरकार का कुछ बजट बचाने के लिए शार्ट सर्विस व्यवस्था, अनिवार्य मिलिट्री सेवा का विकल्प घातक साबित हो सकता है। क्योंकि अकुशल नेतृत्व से सुरक्षा व्यवस्था के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
आर्मी की सर्विस 3 साल देकर क्या हम युवाओं को प्राइवेट इंडस्ट्रीज के लिए छोड़ दें? यह तो प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने वाली बात हुई। कम से कम हमें सेना को प्राइवेटाइजेशन से दूर रखना चाहिए। एक परिपक्व युवा को प्रशिक्षित अधिकारी बनने में बहुत लंबा समय लगता है और फिर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है। क्या इन बातों से समझौता किया जा सकता है?
हम कैसे भूल गए कि हमने सन् 1962, सन् 1971, सन् 1999 और प्रत्येक दिन LOC/LAC पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से युद्ध के माहौल से गुजर रहे हैं? क्या ऐसे में यह सही रहेगा कि हम कम प्रशिक्षित लोगों को सेना की मुख्यधारा से जोड़ दें?
'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' विकल्प के तहत इस फार्मूले को देश की आंतरिक व्यवस्था सुधारने के लिए कुछ क्षेत्र में अपनाया जा सकता है। जैसे भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र, भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में, आपदा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, केंद्र तथा राज्य स्तर की पुलिस फोर्स के अकादमिक तथा कार्यालयी कार्यों में, राज्य लोक सेवा आयोग से संबंधित क्षेत्रों में, देश की बहुचर्चित इमारतों, मंदिरों की सुरक्षा आदि क्षेत्रों में इस फार्मूले को अपनाकर प्रभावी बनाया जा सकता है। उपर्युक्त इन सभी क्षेत्रों में देश का युवा वर्ग अपनी शत-प्रतिशत सहभागिता निभाएगा।
आज हमें सेना में सूचना तकनीकी को और अधिक सक्रिय एवं मजबूत करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इस दिशा में कुछ वर्षों की शॉर्ट सर्विस या 'अनिवार्य सैन्य सेवा' फार्मूले को नहीं अपनाया जा सकता है। क्योंकि सूचना एवं तकनीकी तंत्र देश की सुरक्षा का मामला है यहां समझौता करना ठीक नहीं। सूचना और तकनीकी के क्षेत्र में सेना को तो स्थाई रूप से मजबूत बनाना समय की मांग है। हमें 'अनिवार्य सैन्य सेवा' फार्मूले को वर्तमान की 'प्रादेशिक सेना' के विकल्प के रूप में अपनाना चाहिए।
वैसे भी देश के युवाओं को अगर राष्ट्र सेवा करनी है तो अन्य बहुत सी ऐसी संस्थाएं हैं, अन्य बहुत से ऐसे कार्य हैं, कई क्षेत्र हैं जहां 3 वर्ष क्या उससे भी अधिक वर्षों तक सेवा दी जा सकती हैं। देश का युवा मस्तिष्क अन्य कई क्षेत्रों में जैसे शिक्षा, चिकित्सा, कृषि में प्रयोग में लाया जा सकता है। जिससे ब्रेन ड्रेन जैसी समस्या का निवारण भी हो जाएगा। परंतु क्या महज 3 वर्ष देश के युवा को अनिवार्य सैनिक सेवा दिलाकर हम अपनी ही राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक व्यवस्था को कमजोर न कर देंगे। कम समय के लिए आने वाले युवा वर्तमान सैन्य अधिकारियों से कैसा समायोजन रख पाएंगे यह भी अपने आप में विचारणीय प्रश्न है। इस प्रकार से तो हम एक कमजोर व्यवस्था बना रहे हैं। जो देखने में तो अच्छी होगी परंतु कार्यकुशलता और नेतृत्व में दीमक खाई हुई लकड़ी की तरह होगी। जो ना मजबूत आधार दे पाएगी और ना ही एक मजबूत सुरक्षा चक्र स्थापित कर पाएगी। हमें एक मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा चक्र स्थापित करना है तो हमें कम से कम 10 से 15 वर्ष तक 'अनिवार्य मिलिट्री सेवा' के लिए देश के युवाओं का चयन करना होगा और शारीरिक, मानसिक मापदंडों में कोई समझौता नहीं करना होगा।
हमारे सामने अतीत की कई कड़वी यादें हैं। हम अतीत और आज वर्तमान में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आतंकवाद, नक्सलवाद से जूझ रहे हैं। क्या तीन वर्ष की सेवा लेकर इन युवाओं को प्राइवेट इंडस्ट्रीज के लिए छोड़ दें? क्या सुरक्षा चक्रों की गोपनीयता को साझा कर दें? क्या देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ यह उचित होगा?
क्या सरकार अपनी कलम से वीरों का भाग्य इस तरह लिखेगी? जिन वीर सैनिकों ने देश पर सर्वस्व लुटा दिया उनकी जगह अनुभवहीनों का चयन कहां तक न्याय संगत है? राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियां ऐसे ही वीर भारतीय सैनिकों की जय बोलेगी जिनकी बदौलत हम आज यहां हैं-
'जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल।'
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©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
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