एक सीधी रेखा-सा बचपन
रस्सी के दोनों छोर से गुजरता
हम सबकी यादों का बचपन
बहती नदी की धाराओं-सा लड़खड़ाता शोर
कसकर तुम्हारे कंधों पर बैठा
बालों को पकड़
जैसे चांदनी में तारों को जकड़
पूरा होता है रात्रि का सफ़र
तुम निडर विपरीत धाराओं पर
लहरों-सी बलखाए डोर
कस लेते हो मेरे दो पैरों के छोर
हर क़दम शब्दों के अनुशासन का पाठ
सिर पर रहता है पांचों उंगलियों का हाथ
हर उंगली जीवन का एक अध्याय है
बंद मुट्ठी में मेरे जीवन भर की आय है
माता तो रक्त में समाई है
पिता उस रक्त की गहराई है
मेरे जीवन के पथ-प्रदर्शक
पहले जीवन के आदर्श
तुम्हारे जाने के बाद
कहां छूटता है पिता का साथ
ख़ुद पिता बनने के बाद।
©चंद्रकांत
fb-Chandra Tewari
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