शुक्रवार, 18 जून 2021

दीवारें ख़ामोश हैं (कविता- चंद्र कांत)

 आज बहुत लंबी बातें हुई 

चुपचाप,मौन बनकर एकटक निहारते

देहली,छज्जे,आंगन के पत्थर

और कुछ पेड़ों से झूलती टहनियों से

आज बहुत वर्षों बाद गीली हो गई चौखट

आंखों में पानी उतर आया।

सीढ़ियां आज कितनी छोटी लगती हैं

दो कदमों में देहली के अंदर और बाहर 

जब सीढ़ियां बड़ी हुआ करती थीं

नाप-तोल करती बचपन का संसार

छोटे कदमों की आहट का अनुमान

भांप लेती थी मां

मेरे लड़खड़ाने से पहले।

अब दीवारें ख़ामोश हैं 

सूखी मिट्टी की तरह-बेजान रेत-सी

हां आज बहुत लंबी बातें हुई 

चुपचाप,मौन बनकर एकटक निहारते

आज कई वर्षों बाद घर की दीवारें देखी हैं 

इन दीवारों से बचपन का नाता है।

© चंद्रकांत

fb-Chandra Tewari

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