*_प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है। उत्तराखंड जिसकी भौगोलिक संपदा का विशाल क्षेत्रफल पेड़ पौधों, वनस्पतियों,औषधियों से आच्छादित है। पर्वतीय प्रदेश का रहन-सहन स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और प्राणी जगत के लिए हितकारी है। यहाँ के युवाओं की पहली पसंद सेना में भर्ती होकर कुल-परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाना होता है। स्वरचित कविता में यहाँ का परिचय कुछ इस तरह आपके समक्ष प्रस्तुत है-_*
*मेरा प्यारा उत्तराखंड-*
मेरे भारत का भू-खंड
मेरा प्यारा उत्तराखंड
देवदार, सागौन, चीड़
असंख्य खगों का सुंदर-नीड़
साल,उतीस, तुन और काफल
नदी-घाटी के गहरे तल
बरगद,पीपल,पंय्या,सेमल,मेहल
बाँज-बुरांश - घना-जंगल
हर मौसम में ठंडा जल
सर्पीली-सड़क पूजा के थाल
घर-घर में सेना के लाल
आलूबखारा,जामिर,नींबू,गलगल
हिसालू किलमोड़ी,घिंघारू-फल
पुलम,आड़ू ,दाड़िम, खुमानी
गढ़वाली-कुमाउनी मीठी बानी।
देवभूमि की यह पहचान
कदम-कदम देवों के थान
चारों धामों का श्रृंगार
गंगोत्री-यमुनोत्री, बद्री-केदार
कुंभ लगे यहाँ बारंबार
बहती गंगा होकर हरिद्वार
झीलों का शहर है नैनीताल
देहरादून-मसूरी के दृश्य कमाल
अल्मोड़ा की बाल-मिठाई
पिथौरागढ़-धारचूला की ऊँची- खाई
बागेश्वर और उधम सिंह नगर
देवीधूरा-चंपावत की डगर-डगर
गढ़वाल की गोद में रूद्रप्रयाग
संगम होता देवप्रयाग
चमोली,पौड़ी,टेहरी और उत्तरकाशी
हिम-प्रदेश के हम हैं वासी
शौर्य और देकर बलिदान
हर-घर में सेना का जवान
सब प्रदेशों से प्यारा
मेरे भारत का भू-खंड
मेरा प्यारा उत्तराखंड।
मध्य हिमालय- बर्फीली धार
सीढ़ी से खेत-बुरांशों के हार
काली-गोरी नदियों का खेल
भागीरथी-अलकनंदा नदियों का मेल
यहाँ शहर-गाँव से लगते हैं
ब्रह्म-कमल यहाँ खिलते हैं
मेल-भाव की कमी नहीं
शहीदों-सा यहाँ, न मिले कहीं
माता लोरी में बच्चे को, सेना के गीत सुनाती है
देवदार-सी हरी वर्दी
युवाओं के मन को भाती है
सरहद की सीमा-रेखा
दुश्मन को हमने देखा
दिया वहीं पर दंड
सब प्रदेशों से प्यारा
मेरे भारत का भू-खंड
मेरा प्यारा उत्तराखंड।
स्वरचित-
©डाॅ0चंद्रकांत तिवारी
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