शनिवार, 19 जून 2021

मेरा प्यारा उत्तराखंड ( कविता-डॉ. चंद्रकांत तिवारी)

 *_प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है। उत्तराखंड जिसकी भौगोलिक संपदा का विशाल क्षेत्रफल पेड़ पौधों, वनस्पतियों,औषधियों से आच्छादित है। पर्वतीय प्रदेश का रहन-सहन स्वास्थ्य के लिए गुणकारी और प्राणी जगत के लिए हितकारी है। यहाँ के युवाओं की पहली पसंद सेना में भर्ती होकर कुल-परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाना होता है। स्वरचित कविता में यहाँ का परिचय कुछ इस तरह आपके समक्ष प्रस्तुत है-_* 


*मेरा प्यारा उत्तराखंड-*


मेरे भारत का भू-खंड

मेरा प्यारा उत्तराखंड

देवदार, सागौन, चीड़

असंख्य खगों का सुंदर-नीड़

साल,उतीस, तुन और काफल

नदी-घाटी के गहरे तल

बरगद,पीपल,पंय्या,सेमल,मेहल

बाँज-बुरांश - घना-जंगल

हर मौसम में ठंडा जल

सर्पीली-सड़क पूजा के थाल

घर-घर में सेना के लाल

आलूबखारा,जामिर,नींबू,गलगल

हिसालू किलमोड़ी,घिंघारू-फल 

पुलम,आड़ू ,दाड़िम, खुमानी

गढ़वाली-कुमाउनी मीठी बानी।


देवभूमि की यह पहचान

कदम-कदम देवों के थान

चारों धामों का श्रृंगार

गंगोत्री-यमुनोत्री, बद्री-केदार

कुंभ लगे यहाँ बारंबार

बहती गंगा होकर हरिद्वार

झीलों का शहर है नैनीताल

देहरादून-मसूरी के दृश्य कमाल

अल्मोड़ा की बाल-मिठाई

पिथौरागढ़-धारचूला की ऊँची- खाई

बागेश्वर और उधम सिंह नगर

देवीधूरा-चंपावत की डगर-डगर

गढ़वाल की गोद में रूद्रप्रयाग

संगम होता देवप्रयाग

चमोली,पौड़ी,टेहरी और उत्तरकाशी

हिम-प्रदेश के हम हैं वासी

शौर्य और देकर बलिदान

हर-घर में सेना का जवान

सब प्रदेशों से प्यारा 

मेरे भारत का भू-खंड 

मेरा प्यारा उत्तराखंड।


मध्य हिमालय- बर्फीली धार

सीढ़ी से खेत-बुरांशों के हार

काली-गोरी नदियों का खेल

भागीरथी-अलकनंदा नदियों का मेल

यहाँ शहर-गाँव से लगते हैं

ब्रह्म-कमल यहाँ खिलते हैं  

मेल-भाव की कमी नहीं 

शहीदों-सा यहाँ, न मिले कहीं 

माता लोरी में बच्चे को, सेना के गीत सुनाती है

देवदार-सी हरी वर्दी

युवाओं के मन को भाती है

सरहद की सीमा-रेखा

दुश्मन को हमने देखा

दिया वहीं पर दंड

सब प्रदेशों से प्यारा

मेरे भारत का भू-खंड 

मेरा प्यारा उत्तराखंड।


स्वरचित-

©डाॅ0चंद्रकांत तिवारी

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