घर के दरवाज़ पर छोटा-सा ताला है
घर के भीतर बड़े-बड़े बक्से हैं
बक्सों में लगा बड़ा-सा ताला है
भाषा की दौड़ में-कई भाषाएं दौड़ रही हैं...!
जहांँ घर पर अब तक अपनी ही मिट्टी की माला है
वहांँ हिम आंँगन-सा सूरज का पहला उजाला है
यहांँ अब सरकारी हाथों में अंग्रेजी की बंदूक है
अपनी ही भाषा की किताबों का बंद संदूक़ है।
©चंद्रकांत fb-Chandra Tewari
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