शनिवार, 17 सितंबर 2022

अपनी मिट्टी अपने शब्द - डॉ चंद्रकांत तिवारी

 घर के दरवाज़ पर छोटा-सा ताला है 

घर के भीतर बड़े-बड़े बक्से हैं 

बक्सों में लगा बड़ा-सा ताला है

भाषा की दौड़ में-कई भाषाएं दौड़ रही हैं...!

जहांँ घर पर अब तक अपनी ही मिट्टी की माला है

वहांँ हिम आंँगन-सा सूरज का पहला उजाला है 

यहांँ अब सरकारी हाथों में अंग्रेजी की बंदूक है

अपनी ही भाषा की किताबों का बंद संदूक़ है।

©चंद्रकांत fb-Chandra Tewari 


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