कभी चांँदनी की रोशनी
कभी दिन का उजाला है
कभी बोलती हैं आँखें
कभी ज़ुबान पर ताला है
समंदर-सी लहरों में
एक ख़्वाब पाला है।
रास्ता है बेखबर मेरे जज़्बातों का
हवाओं संग लहरों ने डेरा डाला है
यहां जल-समाधि में भी जीने की आश है
खारे पानी में भी मीठे पानी की प्यास है।
© चंद्रकांत fb-Chandra Tewari
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