शनिवार, 17 सितंबर 2022

एहसास एक शब्द सीमा - डॉ. चंद्रकांत तिवारी

 कभी चांँदनी की रोशनी 

कभी दिन का उजाला है

कभी बोलती हैं आँखें

कभी ज़ुबान पर ताला है

समंदर-सी लहरों में 

एक ख़्वाब पाला है।


रास्ता है बेखबर मेरे जज़्बातों का

हवाओं संग लहरों ने डेरा डाला है

यहां जल-समाधि में भी जीने की आश है

खारे पानी में भी मीठे पानी की प्यास है।

© चंद्रकांत fb-Chandra Tewari 


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