कलम उठाने से बनता तो
मैं भी बन जाता लोकनायक
लोक-धर्म साहित्य-शास्त्र की
नींव का पत्थर कहलाता
खादी-कुर्ता पहनकर टोपी
घर-घर में भी चिल्लाता
अर्थनीति आड़े ना आती
राजनीति में भी कर जाता
जन को जन से तोड़-जोड़कर
जननायक मैं भी कहलाता
गली-मोहल्ले-मैदानों पर
गाय-गंगा और गीता पर
मैं भी जोर-जोर से चिल्लाता
राष्ट्रवाद की परिभाषा में
मैं भी चुनाव जीत जाता।
डॉ चंद्रकांत तिवारी
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