शनिवार, 17 सितंबर 2022

अल्फाजों में कविता- डॉ. चंद्रकांत तिवारी

शहर के किसी कोने में शोर हुआ है

वक्त निकालकर सुनना 

किसी अपने की चीखने की आवाज

सुनाई देती है यहां कानों में


अल्फाजों में कविता बोलती है

कहीं जलती धूप से शहर चमकता है मेरा

कविता के देश में कभी

शब्द भी रोते हैं।

अब मुस्कुराने की तासीर कम पड़ गई है

कविता में शब्दों की मिलावट है

फ़ालतू के शब्दों की बनावट

इतिहास की एक झूठी किताब है

शब्दों के रेखाचित्र

बनावटी हैं कुछ ऐतिहासिक चरित्र


देखना होगा मिट्टी को कुरेद कर

किसी गांव की तलहटी में

तेरे शहर में शोर बहुत होता है।

शोणित बहाकर शीश कटाकर

धरती की प्यास बुझाई

कभी बारिश की चंद बूंदों ने

रज-रज कण चमकाई 

जननी जन्मभूमि स्वर्गिक मेरी

रज-रज स्वर्णिम कहलायी।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें