शनिवार, 17 सितंबर 2022

महंगें शब्द सस्ते लोग डॉ चंद्रकांत तिवारी

 अपनी इज़्ज़त को ईमानदारी के चादर पर लपेट कर चलता हूंँ 

ऊंँची-नीची पथरीली राहों पर पैदल अकेले ही चलता हूंँ।


जानता हूंँ ईमानदारी एक महंगा शौक़ है गीत यह मैं गुनगुनाऊंँगा फिर भी 

आपकी आवाज़ भी खनकती है पर आप सस्ती चीजों के शौकीन हैं।

अपनी मिट्टी अपने शब्द - डॉ चंद्रकांत तिवारी

 घर के दरवाज़ पर छोटा-सा ताला है 

घर के भीतर बड़े-बड़े बक्से हैं 

बक्सों में लगा बड़ा-सा ताला है

भाषा की दौड़ में-कई भाषाएं दौड़ रही हैं...!

जहांँ घर पर अब तक अपनी ही मिट्टी की माला है

वहांँ हिम आंँगन-सा सूरज का पहला उजाला है 

यहांँ अब सरकारी हाथों में अंग्रेजी की बंदूक है

अपनी ही भाषा की किताबों का बंद संदूक़ है।

©चंद्रकांत fb-Chandra Tewari 


Go on continuously -Dr. C K TEWARI

 A long road 

miles of travel 

Two small steps. 

desire for will 

green grass and some pebbles 

somewhere thorny path 

All companions are of life.

have to keep going 

a few moments rest 

will power in mind 

being energetic again 

Go on continuously.

लहरों का अनुशासन -कविता- डॉ चंद्रकांत तिवारी

 कुछ गहरा और कुछ कम गहरा

लहराते हुए पानी के बुलबुले

उठती पानी की तरंगे और गहराई में खो जाती तिरंगे

निरंतर गतिमान नदी का कितना सुंदर अनुशासन है।

नदी किनारे के सुंदर हरे-भरे वृक्ष 

और पत्थरों पर टकराती प्रतिध्वनि,

प्रकृति हमारी कल्पनाओं से भी अधिक सुंदर और खूबसूरत है।

दूर तक बहती नदी को देखना बहुत सुंदर एहसास है। सच में..!

लहरों का अनुशासन और शीतलता का स्पर्श,

तरंगों का धैर्य और कल-कल करती ध्वनि,

बहती तटों तक की सीमा रेखा का गंगा जल स्पर्श

मन को भीगोनें वाला स्पंदन है।

सच में सुंदरता इतनी पुरानी है जितना कि संसार 

और इतनी नई कि प्रत्येक क्षण! 

© Chandra Kant Tewari

fb-Chandra Tewari 

The discipline of the waves ©Dr. Chandra Kant Tewari

The discipline of the waves

©Dr. Chandra Kant Tewari 

 some deep and some less deep

waving water bubbles rising water waves 

And the water gets lost in the depths of the tricolor

What a beautiful discipline of a constantly moving river.

beautiful green trees on the banks of the river

And the echo hitting the stones,

Nature is more beautiful and beautiful than our imaginations.

It is a beautiful feeling to see the river flowing far away. Really..! 

The discipline of the waves

and the touch of coolness, 

The patience of the waves 

and the echoes of time and time again,

The Ganges water touches the boundary line till the flowing banks 

It is a mind-soaking vibration.

Truly beauty is as old as the world and so new every moment! 

बीती रात एक राजनीतिक स्वप्न डॉ चंद्रकांत तिवारी

 कलम उठाने से बनता तो 

मैं भी बन जाता लोकनायक

लोक-धर्म साहित्य-शास्त्र की

नींव का पत्थर कहलाता

खादी-कुर्ता पहनकर टोपी

घर-घर में भी चिल्लाता

अर्थनीति आड़े ना आती

राजनीति में भी कर जाता

जन को जन से तोड़-जोड़कर

जननायक मैं भी कहलाता

गली-मोहल्ले-मैदानों पर

गाय-गंगा और गीता पर 

मैं भी जोर-जोर से चिल्लाता

राष्ट्रवाद की परिभाषा में

मैं भी चुनाव जीत जाता।


डॉ चंद्रकांत तिवारी 

शब्दों का कारवां चंद्र कांत

 भौतिक जगत के क्रियाकलापों से व्यक्ति सभ्य होता है परंतु आत्मबल हृदय को संस्कारित करने से ही प्राप्त होता है। आत्मिक मूल्य व्यक्ति के जीवन मूल्य को मूल्यवान बनाते हैं। भौतिक संसार में सभ्यता व्यक्ति को जीवन जीना सिखाती है परंतु संस्कारवान नहीं बनाती।

संस्कार संस्कृति का विषय है, सभ्यता शब्द होने का भाव मात्र।

© चंद्रकांत

Fb-Chandra Tewari

Feeling -poem Dr. Chandra kant Tewari

 when a deep sleep breaks

sleep dreams are broken

we return to the real world

because we are still alive

first morning thank god 

There is some familiar force around us

that gives us energy, 

breathing air, light in the eyes

feeling in the heart

With a smile on your face

and a sparkle in your eyes

Mind's hopes 

fly like a kite flying in the sky 

thank you on the first day of the day

beauty of nature all around

included in our daily routine

nature doesn't sleep

the music of nature around us

Our strength is nature's responses

language and creative music.

Sun and Moon work lifelong 

that's life before sleep

and after sleep breaks.


Dr. Chandra Kant Tewari

fb-Chandra Tewari 

एहसास एक शब्द सीमा - डॉ. चंद्रकांत तिवारी

 कभी चांँदनी की रोशनी 

कभी दिन का उजाला है

कभी बोलती हैं आँखें

कभी ज़ुबान पर ताला है

समंदर-सी लहरों में 

एक ख़्वाब पाला है।


रास्ता है बेखबर मेरे जज़्बातों का

हवाओं संग लहरों ने डेरा डाला है

यहां जल-समाधि में भी जीने की आश है

खारे पानी में भी मीठे पानी की प्यास है।

© चंद्रकांत fb-Chandra Tewari 


अल्फाजों में कविता- डॉ. चंद्रकांत तिवारी

शहर के किसी कोने में शोर हुआ है

वक्त निकालकर सुनना 

किसी अपने की चीखने की आवाज

सुनाई देती है यहां कानों में


अल्फाजों में कविता बोलती है

कहीं जलती धूप से शहर चमकता है मेरा

कविता के देश में कभी

शब्द भी रोते हैं।

अब मुस्कुराने की तासीर कम पड़ गई है

कविता में शब्दों की मिलावट है

फ़ालतू के शब्दों की बनावट

इतिहास की एक झूठी किताब है

शब्दों के रेखाचित्र

बनावटी हैं कुछ ऐतिहासिक चरित्र


देखना होगा मिट्टी को कुरेद कर

किसी गांव की तलहटी में

तेरे शहर में शोर बहुत होता है।

शोणित बहाकर शीश कटाकर

धरती की प्यास बुझाई

कभी बारिश की चंद बूंदों ने

रज-रज कण चमकाई 

जननी जन्मभूमि स्वर्गिक मेरी

रज-रज स्वर्णिम कहलायी।


हिन्दी पखवाड़ा कार्यक्रम डॉ. चंद्रकांत तिवारी

 *हिन्दी पखवाड़ा*

1 सितंबर से 15 सितंबर

16 सितंबर से 30 सितंबर ।

भारत सरकार की राजभाषा नीति/नियमों के अनुसरण में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वर्ष भर कई समारोहों का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को 'हिन्दी दिवस' मनाया जाता है और 1 सितम्बर से 15 सितंबर या 15 सितम्बर से 30 सितंबर तक हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है। इस दौरान प्रशासन के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को राजभाषा हिन्दी में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु हिन्दी में टिप्पण एवं आलेखन और कर्मचारियों के लिए टंकण प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती है। काव्य गोष्ठियां, हिंदी भाषा संबंधी सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। विद्यार्थियों के लिए निबंध लेखन वाद -विवाद प्रतियोगिता, अंताक्षरी, तकनीकी भाषा लेखन, इसके साथ ही साथ विद्यार्थियों में भी राजभाषा हिन्दी के प्रति अभिरूची उत्पन्न करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सभी माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए वाक्पटुता प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा मुख्यालय क्षेत्र के महाविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों के लिए स्वरचित कविता पाठ आयोजित किया जाता है। क्षेत्र के महाविद्यालय स्वयं इस दिशा में उत्कृष्ट कार्य करते हैं।

हिन्दी पखवाड़ा के दौरान राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भारी संख्या में अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी काफी उत्साह से भाग लेते हैं। प्रशासन के सभी विभागों द्वारा भी अपने-अपने कार्यालयों में हिन्दी पखवाड़ा मनाए जाने के सिलसिले में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और कर्मचारियों को हिन्दी में कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है, जिसके लिए विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए प्रतियोगिताएँ आयोजित कर विजेताओं को पुरस्कृत किया जाता है। राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी पखवाड़ा के समापन पर पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें विजेताओं को पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन बड़े ही भव्य रूप से किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित होते हैं।  

उच्च शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी संस्थाएं एवं शिक्षण संस्थान इस क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करती हैं।

*हिंदी प्रकृति और संस्कृति की भाषा है। 

हिंदी हमारे राष्ट्र का गौरव है।*

डॉ. चंद्रकांत तिवारी fb-Chandra Tewari 



🇮🇳

शनिवार, 10 सितंबर 2022

आंँखों पर हिमालय- कविता डॉ. चंद्रकांत तिवारी

 आंँखों पर हिमालय- डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 

पैरों से मस्तक की ओट किए गंगा पर्वत भी चढ़ती है 
मस्तक की शीर्ष जटाओं से गंगा चरणों तक बहती है

मस्तक पर फिर से शीश झुका गंगा धारा बन बहती है
मस्तक-मस्तक की चोट लिए गंगा शीतल मन हरती है

मस्तक की कुटिल-कटारों पर वैभव के तीव्र प्रहारों पर
कष्टों के दंश निगलती है यहांँ गंगा कण-कण ढलती है।

शिला-शैल पर्वतमाला श्वेत वसन-सा गलता है
शिव प्रदेश का कौमार्य यहांँ हिमजल स्वयं पिघलता है 

समतल तल-सम पाने को पानी-सा पेय उतरता है 
नेत्रों की करुण पुकारों पर हिम-धवल अभिसारों पर

सूखे-कंठों की अभिलाषाओं पर मस्तक के शिखर पिघलते हैं
बिन भाषा ज्ञान के अश्रु यहांँ वातायन में बहते हैं

तन शीतल मन हरने को हाथों गंगाजल भरने को
सब संकल्प यहीं रह जाते हैं हम धारा-प्रवाह बढ़ जाते हैं।

हे गिरिधर ! गिरीप्रांत, गिरिवर, नगतल -पगतल  नगपति विशाल
चरणों पर शीश झुकाता हूंँ  तुम ही रक्षक तुम ही ढाल
नगपति मेरे जगपति विशाल मेरी मिट्टी के हिमगिरी भाल
ओट तुम्हारी बैठे हैं मांँ पार्वती शिव-शंकर महाकाल 
तुम जननी-तुम ही त्रिकाल, हर प्रश्नों के उत्तर की ढाल।

तुम स्रोत-वाहिनियों के जीवन-आधार
जीवन-जगत के पारावार
मैं भी लौट गया इस पार
हाथों में गंगा जल की धार
हे सृष्टि विनायक भूतल-धार
पार लगाओ जीवन पतवार
कविता सरिता बहती सत्कार
अखिल विश्व के पालनहार
हे हिमगिरी के उज्ज्वल आधार
सर्वत्र तुम्हारा संगीत सितार
कैसे हो जीवन मनुहार!

एकांत प्रांत में बैठा- बैठा
पथिक जीवन-मन कुछ खोज रहा
कंकड़-पत्थर हाथों में लिए
अपना घर-आंगन जोड़ रहा
एकांत प्रांत में बैठा- बैठा
हिम आंँचल को टोह रहा
हिम प्रदेश का होकर भी
निज वातायन को खोज रहा
हिमाचल के प्रांगण में बैठा
निज आलय को खोज रहा।

मन में भी तो कितने सागर 
नित-नित उठते गिरते हैं 
कितने ही अखंड-पर्वत यहांँ 
पल भर में बनते गिरते हैं
मन में रोज पिघलता है
हर रोज हिमालय ढलता है
हिम प्रदेश का वासी हूंँ
आंँखों से हिमालय बहता है
वह हिमगिरि का वासी है 
जिन आंँखों पर हिमालय बसता है
पथरीली कंकड़ राहों पर 
मन  हंसता-हंसता  बसता है।

©चंद्रकांत 
fb-Chandra Tewari 

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

 *(21 फरवरी)-अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* के अवसर पर-©चंद्रकांत

 *(21 फरवरी)-अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* के अवसर पर-

©चंद्रकांत   

यूनेस्को मातृभाषा को विशेष स्थान देता है। यह 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाता है। (यूनेस्को) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन प्रतिवर्ष 21 फरवरी को भाषाई सांस्कृतिक कार्यक्रम विविधता पूर्ण विषयों के साथ-साथ बहुभाषावाद संबंधी विषयों को भी बढ़ावा देने के साथ-साथ जागरूकता फैलाने का कार्य भी करता आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा यूनेस्को द्वारा नवंबर 1999 में की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए इस वर्ष अर्थात 2022 का विषय *'बहुभाषी शिक्षण के लिए तकनीकी का प्रयोग- चुनौतियां और अवसर'* रखा गया है। इस बात को कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 से 2032 के बीच की (10 वर्षों की) समयावधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दशक के रूप में चिह्नित किया है।

इस बात में कोई भी शक नहीं कि किसी भी देश की शक्ति उसकी भाषा में निहित होती है। अपने देश की भाषा, स्वदेशी, क्षेत्रीय एवं आंचलिक अर्थात मातृभाषा बोलने वालों के क्रियाकलापों-गतिविधियों की सतत, संवेदनाओं में निहित होती हैं। जो देश अपनी भाषा का सम्मान करता है, वही देश अपनी भाषा की जीवंतता को भी वास्तविक स्तर पर आत्मसात करता है। वह राष्ट्र अपनी जड़ों से हमेशा जुड़ाव महसूस करते हुए अपने पैतृक स्थान से पलायन नहीं करता अपितु अपनी बोली के साथ-साथ अपने लोगों को भी प्रेम करता है। यह प्रेम अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पण के भाव रखने का एकमात्र विकल्प दर्शाता है। वह राष्ट्र सर्वशक्तिमान होता है जो अपनी मिट्टी से गहराई से भावात्मक स्तर पर जुड़ा हुआ होता है। ऐसा राष्ट्र हमेशा मातृभूमि की लड़ाई अपनी मातृभाषा में लड़ने का सामर्थ्य रखता है। सच्चा मातृभाषी-राष्ट्रवादी-राष्ट्रभक्त-राष्ट्रसैनिक जब दुश्मन पर अपनी तलवार से प्रहार करता है तो वह पहला प्रहार मातृभूमि की रक्षा के लिए मातृभाषा द्वारा ही करता है। उसकी मातृभाषा द्वारा किया गया कार्य जोश एवं उत्साह से भरपूर शक्ति से संपन्न होता है। मातृभाषा द्वारा किया गया यह प्रहार और कर्तव्य-पाठ का पुनर्पाठ, स्वराष्ट्र की विजयश्री का जयघोष स्थापित करने वाला, शंखनाद की भांति कीर्तिश्री का विजय स्तंभ स्थापित करता है। मातृभाषा की शक्ति और सामर्थ्य अतुलनीय है। अपनी भाषा के प्रति प्रेम, सद्भाव, अपनत्व, सम्मान और समर्पण का भाव ऐसा हो कि जिस तरह जड़ों का मिट्टी से और हिमालय का नदियों से लगाव होता है। मातृभाषा के पुष्प का आदर और व्यावहारिक स्तर पर जीवंतता, शिक्षण स्तर पर प्रयोजनमूलकता एवं रोजगार के अवसर अन्य भाषा से अलगाव करके नहीं अपितु सद्भाव की भावना के साथ, अपनी मातृभाषा को विकसित और पल्लवित-पुष्पित करके प्राप्त किया जा सकता है।

©चंद्रकांत  Fb-Chandra Tewari

आंँखों पर हिमालय- भाग-3 ©डॉ. चंद्रकांत तिवारी

आंँखों पर हिमालय भाग-3

©डॉ. चंद्रकांत तिवारी  fb-Chandra Tewari

    कुदरत की रंगीनी और बर्फ की चादर और क्या है यहां चुराने के लिए। चंद बारिश की बूंदें और फ़ुहारों संग सरसराती हवाएं कानों पर स्पर्श होते ही सिहरन-सी पैदा कर देती है पूरे शरीर पर। ऊंची पहाड़ियों की चोटियों पर चढ़कर दूर तलक पर्वत श्रृंखलाओं को देखना आनंद का कोई अंतिम छोर नहीं होता। विस्तृत फलक पर बैठकर आनंद की अनुभूति गूंगे व्यक्ति के मीठे फल खाने के समान ही प्रतीत होती है। कितनी सुंदर है यह पर्वत श्रृंखलाएं एक दूसरे को अपने बाहु-पाश में जकड़े एकता का अभिन्न सूत्र स्थापित करते हुए असंख्य जीव जंतुओं एवं पादप, फूल-पौधों को अपने हृदय में स्थान देते हैं।कितना विशाल हृदय है इन पर्वत श्रृंखलाओं का। कितना अपार धैर्य है। इनके भीतर शांत कोमल भावना लिए हुए एक वीर पुरुष की भांति अपना मस्तकाभिषेक स्वयं ऊंचा किए हुए संपूर्ण चराचर जगत को इस प्रकार से निहार रहे होते हैं कि आओ मेरे प्रांगण में बुद्धियुग के प्रतिस्पर्धियों कुछ क्षण बैठो और मुझे शांत होकर निहारो और अपने भीतर भी धैर्य धारण करने का संकल्प लेते हुए चराचर जगत में अनवरत विकास कार्यों से जुड़े रहो। पर्वत की अपनी भाषा-परिभाषा है। हरे वृक्षों की अपनी भाषा है। इन पर्वतों पर विचरण करने वाले जीव जंतुओं और मानव समाज की भी अपनी भाषा-परिभाषा है। परंतु प्राकृतिक शक्तियों की केवल एक ही परिभाषा होती है। एक ही संस्कार होता है और वह है स्वयं से निर्धारित, आत्म संस्कारित अपनत्व की भाषा का यथार्थ। वह है नैसर्गिक सुंदरता के विहंगम दृश्य, मनभावन-मुग्धकारी सम्मोहित करने की शक्ति का व्यापक केंद्र, हृदय की भावनाओं का विस्तार, धरा और क्षितिज का समन्वय और एकांत की संस्कृति का नादमय सौंदर्य। जो मन को भीतर से संस्कारित करता है। जिसका न कभी आदि है ना कभी अंत हुआ है और ना कभी प्रारंभ हुआ है और ना ही कभी विश्राम होगा। यह अनवरत गंगा की धारा का जयघोष है। श्वेत हिमालय में लिपटा यथार्थ का जल और संकल्प का गंगाजल। सुंदरता इतनी पुरानी है जितना पुराना संसार और इतनी नई जितना प्रत्येक क्षण। ऐसी सुंदरता को अपनी आंखों में समेटते हुए बस यही जीवन जीने का संकल्प धारण करते हुए, काश ऐसा समय व्यतीत हो जाता परंतु समय और नियति कुछ अलग ही परिभाषाओं को लेकर चलती है। यह पर्वत श्रृंखलाएं जो दूर से देखने पर सौंदर्य का अप्रतिम स्वरूप प्रकट करती हैं, यहां का जीवन और यहां का रहन-सहन ना ही इतना सरल है और ना ही इतना आसान। पहाड़ का होने के लिए पहाड़ जैसा व्यक्तित्व होना भी बहुत जरूरी है। 

यहां ऐसी ठंड जिसे घोलकर शहरवासी शरबत में पी जाएं। कितना सुंदर यथार्थ है। विशाल पर्वत श्रृंखलाओं पर श्वेत वसन-सा लिपटा हुआ। कुदरत की रंगीली और बर्फ की चादर और क्या है यहां प्रकृति का उपहार। ऊंची चोटी पर चढ़कर दूर तक पर्वतों और घने जंगलों को निहारना देवदार के घने वृक्ष अपना मस्तक ऊंँचा किए बरसात में कुछ और हरे हो चले हैं। ठंड भी ऐसी जो हृदय को नई स्फूर्ति एवं ऊर्जा प्रदान करने वाली है। पर्वतीय प्रदेशों की ठंड, यौवन की दहलीज प्रत्येक सैलानी के मन की भावनाओं के संसार को, उद्दीप्त सांसों में जीवन का रस घोल देती है और स्पर्श कर नई शक्ति देती है।

ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं पर ऊपर चढ़ने के लिए शारीरिक क्षमता-भुजाओं से अधिक मनोबल की आवश्यकता होती है। हृदय में अपार धैर्य होने के साथ-साथ जीवन जीने की दृढ़ इच्छा भी होना बहुत जरूरी है। यह हिमालय मेरे आंगन में है। मैं इस हिमालय से निरंतर अपने व्यक्तित्व को निखारने का प्रयास करता हूं। हालांकि यह इतना सरल कार्य नहीं है फिर भी मैं प्रयास करता हूं कि कुदरत की इन रंगीनियों के संग कुछ समय बिताकर अपने भीतर यहां का नैसर्गिक सौंदर्य और विशाल धैर्य की क्षमता को हृदय में विकसित करते हुए जीवन जगत की ओर इस रूप राशि को बिखेरने का प्रयास किया जाए। परंतु समय साक्षी है, आंखों के देखे हुए दृश्य मेरे जीवन की अनुपम निधि है। ऊंचे पर्वत, गहरी-हल्की नदियां, घने जंगल, बांज-बुरांश और देवदार  के वृक्ष, कंकड़-पत्थर, दो पहाड़ों के बीच से गुजरती छोटी-छोटी संकरी गलियां, छोटे बड़े पत्थरों पर दौड़ लगाती युवा जिंदगी, एक ही क्षेत्र की दो गांँवों की संस्कृतियों को जोड़ता भावनाओं का विशाल सेतुबंध, विशाल जलधाराएं और इन जलधाराओं के नजदीक सभ्यता के मुहाने, देवलोक की सभ्यता का निवास स्थान और नज़दीक बना यह नैसर्गिक प्राकृतिक संपदा का ग्रामीण परिवेश, यहीं मेरा बचपन बड़ा हुआ था और युवावस्था की कोशिशों ने इन पथरीले रास्तों से राजमार्ग तक पहुंचा दिया। परंतु उन पत्थरों पर चलना और कुछ क्षण हरी घास पर बैठना आज भी भूलने से नहीं भूला जाता। आज जब इन विशाल पर्वतों और बड़े-बड़े घास के मैदानों को जिनको स्थानीय भाषा में बुग्याल कहा जाता है देख कर आंखों की रंगीनियां-हरियाली लौट आई। धरती की रूप राशि को देख कर अपनत्व की संवेदनाएं भीतर से हृदय को भर देती हैं। वाह! कितना सुंदर है यह दृश्य। कितनी सुंदर रूप राशि है। दूर से देखने पर यह घने-घने बांज के जंगल, बुरांश के लाल-लाल फूल, देवदार के वृक्षों में बर्फ के छोटे-छोटे गोले उनके बीच में हरी-हरी देवदार के पत्तों की धारियां वाह! कितना सुंदर दृश्य है। एक या दो बार देखने से मन नहीं भरता। बार-बार हृदय में विचार आता है कि प्रत्येक हरे वृक्षों को गले से लगा लेता, हरे पत्तों से तन और मन का संबंध स्थापित कर लेता, भावनात्मक रूप से जुड़ते हुए आत्मिक रूप से भी जुड़ जाता। यही तो अपने सखा हैं। यही तो अपने प्रिय हैं। यही जीवन जीने की एक सच्ची कला सिखाते हैं। यही तो हमें वह शक्ति प्रदान करते हैं जिससे हमारा आत्मबल और मजबूत होता है। मानवता की विकास यात्रा का यही तो वह प्रारंभिक स्थल है जहां से हमने विकास के पदों पर चलना सीखा। पहाड़ का होने के लिए पहाड़ जैसा व्यक्तित्व भी चाहिए। 

सोमवार, 31 जनवरी 2022

सेना के प्रति - ©चंद्रकांत

यह रक्त नहीं अभिमान का 

मां के दूध का कर्ज निभाना है

हर मानक पर खरा उतरना है

साहस का परचम लहराना है।


शरीर के मानक से भी बढ़कर

मन के मानक होते हैं

पर मन ही सब कुछ हार गया तो

हम साहस का पथ भी खोते हैं।


अभिमन्यु का रणकौशल

हर मानक पर खरा उतरता था

शरीर बड़ा या सोच बड़ी

द्वंद यहां भी होता था

कर्ण-एकलव्य का दृढ़ संकल्प

जीत का केवल मात्र विकल्प।


नित-नित कर्मों की शिक्षा से

कर्ण- एकलव्य ने मान बढ़ाया था

गुरुकुल के मानक के अनुरूप 

ख़ुद का मानक अपनाया था

गुरु द्रोण का पार्थ - शिष्य

अर्जुन ने संग्राम मचाया था।

महाभारत के महा-समर में

दृढ़-संकल्प का मानक अपनाया था।


वीर कर्ण की यश गाथा

सदियों तक मुंह-जवानी है

दानवीर की दान कथा

महाभारत की व्यथा पुरानी है

दृढ़ इच्छा, कर्म-संघर्ष जहां

पथ-यश है - वैभव की महारानी वहां।


वीर सैनिकों याद रहे 

हर मानक से बढ़कर यहां

साहस ही नई कहानी है।

रणभूमि है यह विवेकहीन कोई बात नहीं

ऊंचे पर्वत-गहरी घाटी-बर्फीली चट्टानें हैं

आर-पार का युद्ध यहां

मन का साहस बढ़ता है

जंग के मैदानों पर यौवन यहां गड़ता है।

विश्व फलक की यशगाथा में

तिरंगे का मानक बढ़ता है।

©चंद्रकांत 

दिनांक - (31- जनवरी-2022)

fb-Chandra Tewari