ओस की बूंदों में सिमटी पत्तियां
हरी घास के घरों में लिपटी पत्तियां
डाल से टूटती-बिखरती पत्तियां
अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाती पत्तियां।
रात्रि-गर्भ से निकलती कलियां
विपरीत हवा के जाती कुछ डालियां
हवा में झूमती-नाचती कुछ बालियां
सूर्य किरणों से टूटती हैं भ्रम-जालियां।
आंख खोल चूमती
रजत किरणों को कलियां
चिड़ियों के मधुर गीतों की ध्वनियां
गूंजती हैं वातायन में लहरियां।
हवा, धूल-मिट्टी, ओस की बूंदों संग
लिपटी शाखाएं तनकर
पत्तियों का भीगा-बदन चुप रहकर
मुंह धोती फुहारें बरसात बनकर
मुरझाए फ़ूल खिल उठे हैं फिर तनकर
सूर्य की किरणों ने तन को पोंछ डाला
खुल गया है रात्रि का कमज़ोर ताला
भोर की किरणों ने आकर पास मेरे
कानों में जीवन का मंत्र फूंक डाला।
©चंद्रकांत
fb-Chandra Tewari
बहुत सुंदर प्रसृरी
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