सोमवार, 12 अगस्त 2019

POETRY WRITTEN BY CHANDRA KANT TEWARI

POETRY WRITTEN BY CHANDRA KANT TEWARI



*बात*

बात-बात में बात हो गई 
देखो कैसी बात 
 बात समझकर न कह पाई 
अपने दिल की बात।

बात बताई बात छिपाई
बात समझ न आई
कैसी-कैसी बात बन गई 
फिर बातों में आई।

बात बताने निकली थी वह
बात बता न पाई
बात बताकर भी उसने
सबसे बात छिपाई।

बात-बात में बात बनाई
क्या बात समझ में आई
किसने बात बढ़ाई थी
और किसने बात छिपाई।

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