POETRY WRITTEN BY CHANDRA KANT TEWARI
*बात*
बात-बात में बात हो गई
देखो कैसी बात
बात समझकर न कह पाई
अपने दिल की बात।
बात बताई बात छिपाई
बात समझ न आई
कैसी-कैसी बात बन गई
फिर बातों में आई।
बात बताने निकली थी वह
बात बता न पाई
बात बताकर भी उसने
सबसे बात छिपाई।
बात-बात में बात बनाई
क्या बात समझ में आई
किसने बात बढ़ाई थी
और किसने बात छिपाई।
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