शनिवार, 10 अगस्त 2019

POETRY WRITTEN BY CHANDRA KANT TEWARI

माँ

                                       DR.   CHANDRA  KANT  TEWARI
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2-     समय के प्रवाह में,

लहरों की गति पर

हमारी जीवन नैया की पालें

तीव्र गति से गतिमान हैं।

आँखें मूँद लेता हूँ

एक तुम्हारी आकृति

मेरी आँखों में,

मेरे हृदय में, है विराजमान

अब यादें नहीं रह गई शेष

तुम्हारी स्मृति ही,

रह गई अवशेष।

धुंध है, साया है।

स्मृति ही सरमाया है।

संभलता हूँ, संभालता हूँ, स्वयं को

स्मृति कोश पालता हूँ।

प्रतिक्षण, प्रतिपल जीवन की दरिया

नित-नित तुम आये, मेरी दिनचर्या।

कैसा हूँ, किस कदर

मैं जीता हूँ

कंकाल हूँ। फीनिक्स पक्षी का

अपनी राख से ही, उठता हूँ।

मैं जब भी दिनचर्या में भरमाता हूँ

तुमको ही निकट पाता हूँ।

वह लोरी गाकर मुझे मनाना,

तुमसे छिपकर मेरा भागना

रात-रात भर, मेरे रोने से

सुबह तक, तुम्हारा जागना।

मेरे गिरने पर

तुम्हारा बेसुध हो जाना,

पास आकर स्पर्श कर,

गोद में उठाना।

अब तक, न भूल सका हूँ।

उन बहुमूल्य रत्नों-सी स्मृति

तुम अब भी, ज़िंदा हो माँ

मेरे रक्त के, कण-कण में।

वह स्मृति अब भी वर्तमान है।

स्तब्ध हूँ, आश्चर्यचकित हूँ

यह सब संभव कैसे

तुम्हारा जलाया शिक्षा रूपी प्रेम का दीपक

मेरे हृदय में, अब तक माँ

प्रज्जवलित है।

तुम घर के, हर कोने में

रसोई में, घर-आँगन में

अब तक, नज़र आती हो।

तुम नक्षत्रलोक के, तारामण्डल की भाँति

मेरे जीवन-परिधि के

चारों ओर गतिमान हो।

मेरा जीवन अनुगामी है तुम्हारा।

मैं अतीत के पृष्ठों पर वर्तमान का बीज बो रहा हूँ;

माँ अब भी तुम्हारी गोद में सो रहा हूँ।

धूल मिट्टी न लग जाये माँ

अपना आँचल फैला दो माँ।

माँ अब तक याद है मुझको

मेरे छोटे पाँव की कोशिश

तुम्हारे दो हाथ पकड़कर

चलने की थी।

किशोरावस्था में तुम्हारा साथ

पूरे हृदय से था।

मेरे चारों ओर, जो सुख शांति थी

तुम ही कारण थी माँ-तुम ही।

आज फिर ढूँढ रहा हूँ माँ

मैं तुमको नित-नित

वह स्पर्श अब, तन को नहीं

हृदय को छूता है।

तुम यूँ रूठ कर, चली गई माँ

अब नहीं आओगी क्या

उस मनहूस दिवस को मैं

अब तक न भूल पाया हूँ

रोता हूँ, पछताता हूँ

स्वयं को सताता हूँ।

तुम्हारी तस्वीर पर लगी धूल को

आँसुओं से मिटाता हूँ।

मेरे नित-नित दिनचर्या के कामों को-माँ

देख रही हो ना

हृदय मंदिर में

तुम्हारे नाम का आसन

अब भी बुन रहा हूँ।

रेत से विलग कर

राई को चुन रहा हूँ।

काँटों से फूलों को

अलग कर रहा हूँ

माँ मेरी माँ ........... आज भी

मैं तुमको, साक्षात देख रहा हूँ।

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