POETRY WRITTEN BY CHANDRA KANT TEWARI
मैंने समंदर से पूछा
कि प्यास नहीं लगती तुमको
तुम तो सारे के सारे खारे हो
गहराई में उतारे हो
लहरों के किनारे हो
समृद्धि के अभिमुख हो
प्रकृति के सम्मुख हो
अनवरत अविराम हो
तुम विष्णु की सैय्या हो
जगत की नैय्या हो
विवादों की परिधि के
तुम ही तो विस्तार हो
कंपित जब होते हो
तो वीणा की तार हो
अविस्मरणीय झंकार हो
छोटे से भू-लोक में तुम
सम्पूर्ण संसार हो।
बुद्धियुग के रत्नगर्भा का
तुम ही जाल हो
तुम काल हो,विकराल हो
सत्य के भीतर का असत्य तुम
जीवन की माया हो
अभेद्य काया हो
पग-पग पर असंख्य किनारे हो
राख की ढेर पर बहते हुए
तुम धैर्य के धारण हो
तुम ही सृजन के कारण हो
माॅझी की पतवार के सहारे हो
तुम तो खारे हो।
तुम ही प्रारंभ
तुम ही मध्य
और तुम ही अंतिम विश्वाम हो
तुम ही सबकी आश हो
तुम ही तो विश्वास हो
जलती चिता की प्यास हो
तुमने कितनों को तारा है
कई जन्मों के प्यासे हो
पवित्र अग्नि के तुम
शीतल सहारे हो
क्योंकि तुम खारे हो
फिर भी हमारे हो।।
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