अंबेडकरवादी विचारों की प्रासंगिकता
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
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डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891-1956), जिन्हें बाबा साहेब के नाम से भी जाना जाता है। कोई भी शिक्षित और जन सरोकारों से जुड़ा हुआ व्यक्ति बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के विचारों से प्रभावित होगा और आत्मिक रूप से जुड़ जाएगा अगर समाज का सच्चा हितैषी होगा।
एक शिक्षक के रूप में जितना भी हम पढ़ते हैं और सुनते हैं उनके विचारों और लेखन ने जीवन में कई बार प्रभावित किया है। डॉ. अंबेडकर न केवल अपने समय से आगे थे, बल्कि कई मायनों में वे हमारे समय से भी आगे दिखाई देते हैं।
आत्ममंथन और विचारें अग्रेषित संदेश तर्कशील प्रश्न --
1- क्या बाबा साहेब के योगदान को हम आज भूल गए हैं क्या आज ?
2- क्या बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण नहीं है ?
3- अंबेडकर जी के मौलिक विचार जो समाज में परिवर्तन लाना चाहते थे, क्या हम उनके सहभागी बन पा रहे हैं ?
4- क्या देश उनके योगदान को वैश्विक दौड़ में भूलता जा रहा है ? या भूल गया है ? इस पर विचार कौन करेगा ?
5- जीवन जीने के लिए सामाजिक समरसता और सरलता कितनी आवश्यक है ? यह वर्षों पहले अंबेडकर जी द्वारा भावी जनसमाज को बताया गया था। जिसका लिखित दस्तावेज संविधान के रूप में हमारे समक्ष है। क्या हम इस तर्क से वाकिफ हैं ?
6 हम बाबासाहेब के किस परिचय को जानते हैं? जो इस देश के डीएनए में उनके योगदान को नहीं समझ सकें या फिर जो उनके जीवन उत्सर्ग को नहीं समझ सके ?
7- क्या आप बासाहेब को दूरदर्शी, भारतीय न्यायविद, समाज सुधारक, अर्थशास्त्री और भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में जानते होंगे ?
8- या फिर क्या वह किन इन सबसे बढ़कर, किसी भी तरह के उत्पीड़न के निडर आलोचक थे ?
9 - या दलित परिवार में जन्में, उन्हें गंभीर सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ा ?
खैर इन चुनौतियों के बावजूद, बाबासाहेब की शैक्षणिक प्रतिभा ने उनके लिए दृढ़ संकल्प के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।
शिक्षा और डॉ॰ भीमराव अंबेडकर --
डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के शिक्षा सिद्धांतों में समावेशी शिक्षा, सामाजिक समरसता और न्याय, और लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषणयुक्त जीवन शामिल था। वे शिक्षा को मानव के सर्वांगीण विकास का साधन मानते थे। उनके मुताबिक, शिक्षा के ज़रिए समाज में चरित्रवान और शिक्षित लोग आ सकते हैं।
समाज को सकारात्मक दिशा देने में डॉ॰ अंबेडकर के शिक्षा सिद्धांतों का सार कुछ इस प्रकार मूल्यांकित किया जा सकता है ---
1- शिक्षा के ज़रिए सामाजिक न्याय समरसता को बढ़ावा देना पहली प्राथमिकता हो।
2- समाज की मुख्यधारा में शामिल करते हुए हाशिये पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाना जरूरी है।
3- समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना ।
4- लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषण करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है।
5- शिक्षा के ज़रिए समग्र विकास करना प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।
6 सामाजिक चरित्र को महत्व देना चाहिए
7- प्रत्येक छात्र को मातृभाषा में शिक्षा देना पहली प्राथमिकता।
8- हर छात्र को कम से कम एक विदेशी भाषा का ज्ञान होना ज़रूरी
9- शिक्षक को छात्र के समग्र विकास के लिए ज़रूरी माना जाए।
10- शिक्षकों की योग्यता और क्षमताओं की जांच करनी चाहिए।
11- प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए।
निजी जीवन के दिशा-निर्देश ---
सामाजिक हितार्थ एवं सरोकारों के लिए यह अतिरिक्त विषय बन गया कि उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अंबेडकर ने अपना जीवन जाति-आधारित भेदभाव से लड़ने और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि भारत की प्रगति के लिए सामाजिक समानता और न्याय आवश्यक है।
भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले कानून बनाने, अस्पृश्यता को समाप्त करने और भारतीय संविधान की आत्मा में समानता, न्याय और मनुष्यों की गरिमा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपने कानूनी और राजनीतिक कार्यों के अलावा, अंबेडकर शिक्षा, श्रम अधिकारों और लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक थे, उन्होंने विरासत और संपत्ति में महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए। हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था से निराश होकर, उन्होंने 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया, जिससे दलित बौद्ध आंदोलन की शुरुआत हुई।
डॉ. अंबेडकर की विरासत भारत और उसके बाहर सामाजिक न्याय और समानता के लिए आंदोलनों को प्रेरित करती रही है। उन्हें न केवल एक प्रतिभाशाली विद्वान और सुधारक के रूप में याद किया जाता है, बल्कि लचीलेपन के प्रतीक और मानवीय गरिमा के लिए एक अथक योद्धा के रूप में भी याद किया जाता है।
पढ़-लिखकर शिक्षा से संपन्न अंबेडकर ने धोती और लंगोट को छोड़ कर कोट पैंट पहन लिया। गांधीजी ने अंग्रेज़ी कपड़ों को छोड़कर समाजसेवी बन धोती और लंगोट पहन लिया। दोनों का अपना-अपना धर्म-कर्म।
वोट के निजी स्वार्थ में अंबेडकर को हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए कि नहीं विचारें। अंबेडकर गांधी के उतने ही कड़े आलोचक थे जितनी उस दौर की वर्तमान व्यवस्था थी । जिससे गांधी और नेहरू के चाटुकार और धार्मिक पंथी दोनों नाराज थे।
इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के बौद्ध आदर्शों में निहित राष्ट्र का सपना देखा था। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस महान व्यक्ति के कार्यों को पढ़ें और महात्मा गांधी के साथ-साथ जाति व्यवस्था के साथ उनके झगड़ों को समझें।
अंबेडकर जी के कुछ जीवन सूक्ति वाक्य जीवन की प्रासंगिकता और जीवन जीने के सामर्थ्य को प्रस्तुत करते हैं। आज के समय में अंबेडकर के ये शब्द बहुत ईमानदार और विवादास्पद लग सकते हैं। अगर हम ईमानदारी से इन जीवन सूक्तियों और कथन वाक्यों को पढ़ें तो जीवन को एक नई दिशा भी मिल सकती है परन्तु निष्पक्ष और ईमानदार होकर ---
1- गरीबी का मतलब पैसे की कमी नहीं बल्कि ताकत की कमी है।
2- मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं की प्रगति के स्तर से मापता हूँ।
3- मन की खेती मानव अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
4- अगर मुझे संविधान का दुरुपयोग होता हुआ दिखाई दे, तो मैं उसे जलाने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा।
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
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