मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

हिमालय का आदर्श -- ©डॉ. चंद्रकांत तिवारी -उत्तराखंड प्रांत

 हिमालय का आदर्श --

(आंँखों पर हिमालय)

©डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 


The development of overall personality is formed by the conduct, thoughts, imagination, intellectual environment and sociality as well as the sense of coordination of each person.

The greater the ideal of a particular person or institution, the more extensive and permanent will be the sociality of that person and institution.



“The Himalayas have seen totality in smallness and smallness in totality.”

It depends on us, how we are seeing the scenes visible or reflected in front of us.


हिमालय को आत्म-प्रशंसा या प्रशंसा की आवश्यकता नहीं। व्यक्ति-विशेष या व्यक्तिगत भावनाओं को आत्म-प्रशंसा की आवश्यकता है। व्यक्ति आत्म-प्रशंसा से कब बाहर निकलेगा? कहना मुश्किल है, जबकि वह हिमालय के समक्ष एक सूक्ष्म बूंद या अंश मात्र है। हिमालय के अपार प्राकृतिक दृश्य और उसकी ज्ञान परंपराएं अतुलनीय हैं। यह व्यक्ति-विशेष की निजी क्षमता एवं दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह कितना और कहांँ तक देख सकता है और कितनी सहजता से उसे आत्मसात कर सकता है।


हिमालय से हज़ार गंगा धाराएं निकलती हैं। हिमालय के विशाल अमृत सागर से हजार धाराएं लोक मानस के कंठ को भिगोती हैं। दिव्य हिमालय-सा सतगुरु ईश्वर का व्यक्तित्व और आदर्श मनुष्यता को अमृत की बूंदों का रसपान कराता है। विशाल हिमालय से असंख्य धाराएं जब निकलती हैं तो विद्यार्थी की तरह निर्मल समाजसेवी बनकर भावी समाजिक परिधि को गति प्रदान करने के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं को भी सक्षम बनाती हैं।


     विशाल हिमालय रूपी कविता के समक्ष कवि हृदय, सहृदय स्वयं में एक छंद है। विशाल गिरिवर के समक्ष कवि हृदय स्वयं एक छोटा सा अंश मात्र है। हिमालय का व्यक्तित्व कुछ इसी तरह प्रतीत होता है। हिमालय की गरिमा को लिए प्रत्येक कवि अपने मन के भीतर कई बार पिघलता हुआ स्वयं में अपनी कविता का मार्ग तय करता हुआ शांत होकर शीतल जल-धारा की तरह बहता रहता है। यह निरंतरता ही जीवन का सौभाग्य संगीत है। अनवरत यात्रा का गवाक्ष हिमालय-सा आदि पुरुष प्रत्यक्षदर्शियों और स्वप्नजीवियों के लिए सदियों से प्रेरणा का स्रोत बना है।


हिमालय का कौमार्य सदा ही प्रेरणा का अजस्र स्रोत रहा है। ना चाहते हुए भी सहृदय, कवि हृदय बन कविता को सहेजने की ओर प्रेरित हो जाता है। नैसर्गिक सौंदर्य कविता की जननी है। कविता की उत्पत्ति और विकास की संभावनाएं सब प्रकृति सौंदर्य में निहित हैं। कवि मात्र शब्दों का चयन करता है। रेखाचित्रों को शब्दचित्रों में पिरोने का कार्य कवि प्रकृति के बिम्बों को देखकर ही करता है। अतः जिस कविता में जितने सकारात्मक बिम्ब होंगे वह कविता उतनी सकारात्मकता के साथ सहृदय, कवि हृदय के साथ तादात्म्य स्थापित कर पाएगी।


तुम दिव्य-हिमालय मैं लघु सरिता

तुम शब्द हजार मैं छंद-कविता 

तुम गिरिवर पाषाण-प्रचंड 

मैं ओट तुम्हारी मानस-खंड ।


    मौन रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है । शांत रहकर भी जीवन संगीत एवं उसकी गतिविधियों को संचालित करते हुए, प्रकृति-प्रांगण के सम्मुख बैठे व्यक्ति के अंतर्मन को पढ़ा जा सकता है। अपनी स्वच्छंद आंँखों से विद्यार्थी या जिज्ञासु साधक के अंतर्मन के दृश्य-पटलों को एवं उसकी विभिन्न गतिविधियों को समझते हुए, मरहम के रूप में अपनी बातों द्वारा सही दिशा संकेत देते हुए, पथ-प्रदर्शक की भांँति राह पर लाकर गंतव्य तक पहुंँचाना कुछ इस प्रकार का व्यक्तित्व प्रकृति बिम्बों का हिमालय प्रदेश में देखा जा सकता है। हिमालय बहुत कुछ सिखाता है। 


हिम शिखरों का पर्वतीय सौंदर्य निर्विकार, अनादि, अनंत, स्वरूपानंद है। कल्पनाओं का विशाल श्वेत शिखर कब अपने सौंदर्य की राशि लुटाता है? यह अकथनीय है और अकल्पनीय भी।


कभी-कभी हिमालय के चेहरे पर हाव-भाव उभर आते हैं। एक स्वच्छंद बालक की हंसी दोनों विशाल गालों में पढ़ने वाली लंबी सी रेखाएं मुख मंडल की आभा को दो हिस्सों में विभाजित कर देती हैं। आंँखों के दो प्याले अतल गहराइयों में तरलता के भाव लिए अंतस की परिधि के प्रकोष्ठों द्वारा स्वयं से आत्म साक्षात्कार करते हुए हृदय की गहराइयों में असंख्य जज्बातों के समंदर को लेकर कभी श्रृंग कभी गर्त की भांँति प्रकृति-प्रांगण के सम्मुख बैठे व्यक्ति या कवि हृदय के अंतर्मन पर समतल-सा मार्ग तय करते हैं।


     मैं जब भी विशाल प्रांगण के सम्मुख जाता हूंँ एक बात हमेशा मुझे ध्यान आकर्षित करती है कि जब भी कभी मैं उपत्यका की तलहटी में बैठता हूंँ तो इसका विशाल फलक आकर्षित किए बिना नहीं रहता। सम्मोहन इसके परिवेश में रचा-बसा है। जीवन की मोक्षस्थली का केंद्र यहीं है। सभी शक्तियों का समुचित केंद्र भी।


हिमालय का व्यक्तित्व महान है। हिमालय की सरलता और तरलता व्यक्ति को समाजिक सौहार्द बनाए रखने में मदद करती है। व्यक्ति विशेष और साधारण को अतिसाधारण बनाती हैं। पास बैठे व्यक्ति को सामर्थ्यवान बनाते हुए प्रेम-सौंदर्य की अतल सीमाओं में स्वच्छंद गति से उड़ने की शक्ति और अंतर्मन में पड़ने वाले विभिन्न आयामों पर नैतिक चरित्र के अपार दृश्य को अवतरित करती है। मुख मंडल पर श्वेत शिखर की पवित्र लालिमा हमेशा ही आकर्षक मुस्कान और हृदय में प्रेम की अपार राशि, सम्मुख प्रकृति-प्रांगण में बैठे व्यक्ति पर आशीर्वाद के लिए सदा विनम्र बने रहना सिखाती है। साधारण व्यक्ति के जीवन में असाधारण सौंदर्य रूप राशि से भर देती है।


समग्र व्यक्तित्व का विकास प्रत्येक व्यक्ति के आचरण, विचार, कल्पना, बौद्धिक परिवेश और सामाजिकता के साथ-साथ समन्वय की भावना से बनता है। जिस व्यक्ति विशेष या संस्था का आदर्श जितना बड़ा होगा उस व्यक्ति एवं संस्था की सामाजिकता भी उतनी ही विस्तृत और स्थायी होगी।


"हिमालय ने लघुता में समग्रता को और समग्रता में लघुता को देखा है।" यह हम पर निर्भर करता है, कि हम हमारे सामने दिखने वाले या प्रतिबिंबित होने वाले दृश्यों को किस रूप में देख रहे होते हैं। सहजता और संवेदना, स्वीकारोक्ति और आत्मीयता, परिपक्वता और परिपूर्णता आत्मिक संवेदनाएं हैं। यह सब श्रृद्धा का विषय है। जिन पत्थरों को साधारण व्यक्ति मात्र देखा करता है, उन पत्थरों को ही साधारण श्रृद्धावान पूजते हैं।


हिमालय जीवन का यथार्थ वैभव है। यह वर्तमान से कहीं अधिक अतीत की स्मृतियों का तेजस पुंज है। एक-एक पवित्र बूंदों का समुच्चय है। एक वैभवशाली इतिहास का मेरुदंड है। कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का एकमात्र साधक एवं यथार्थजीवी। यह तपस्वी ज्ञान परंपरा की पुण्य स्थली भी। 


जीवन के यथार्थ दृश्यों को हम किस रूप में देखते हैं, किस रूप में महसूस करते हैं, महसूस करने के बाद क्या हम उन साक्षात दृश्यों/वस्तुओं से अपनेपन का लगाव रख पाते हैं? ऐसा लगाव जो हमें बार-बार अपनी ओर आकर्षित करता हो। हमारे मन की रिक्तता को पूर्ण करता हो। हमारे जीवन के अवकाश को इंद्रधनुषी रंगों से भर देता हो। हमारी विषम और कठिन बनती जा रही जीवनशैली को सरल और सहज बना देता हो। हमारी कम पड़ती श्वांसों के मध्य रक्त का संचार करता हुआ जीवन की लालिमा के नए दृश्यों को उभरता हो। यह संभव है कि हम अंतिम स्पंदन तक स्वयं से ही संघर्ष कर रहे होते हैं परंतु जो प्रकृति सौंदर्य हमने अपने लिए निर्मित की है वह एक ऐसी दुनिया है जो दो सगे-संबंधियों के अकेलेपन से भरी हुई है। जैसे जीवन का संगीत रिक्त हो गया है जीवन की तलाश में भटकता हुआ कवि हृदय शून्य की परिधि पर घूम रहा हो। स्वयं के प्रश्नों में ही उत्तर को तलाश कर रहा हो। कवि हृदय कई सौ हृदयों का समुच्चय है। उसकी अभिव्यंजना और अभिव्यक्ति से पहले उसकी देखने की शक्ति, स्पर्श और गंध के अनुभवों का साक्षात् बिंम होती है। हवाओं में तैरता हुआ संगीत कवि की सांसों में घुलमिल कर साकार हो जाता है। यह सब एकांत की वीणा से निकला हुआ नादमय संगीत है। जीवन का वास्तविक जयघोष है। यही गुरु परंपरा की लोक संस्कृति का उत्थान मंच है। यही गुरुत्व शक्तियों की गतिविधियों का आत्मिक दर्शन जो व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से व्यष्टि एवं मानवता की जन्मभूमि की विकास यात्रा का अंतिम और प्रारंभिक प्रस्थान बिंदु है। हिमालय इन सब बातों का एकमात्र गवाह है। हिमालय से कुछ छिपा नहीं है। हिमालय प्राकृतिक सौंदर्य का उपहार है। प्रकृति का अनुपम आभूषण है हिमालय।

 प्रकृति स्वयं में ईश्वर है। ईश्वर कहीं और नहीं। हमारे परिवेश और मिट्टी के कण-कण में ईश्वर है। 

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