बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

मांँ दुर्गा के नौ रूप - ©डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत

 

Maa Durga always blesses. Navratri is the day of praise and worship of Maa Durga. It is a traditional festival of Hinduism and Hindu religion. Which has cultural and historical importance as well as spiritual and emotional interrelationship.


Navratri is the festival of worship of nine forms of Mahishasura Mardini Goddess Durga Maa. These nine forms are respectively - Shailputri, Brahmacharini, Chandraghanta, Kushmanda, Skandamata, Katyayini, Kalaratri, Mahagauri and Siddhidatri. There are many dimensions in these nine forms of Maa Durga like power and spiritual glory, ascetic character, disciplined life, balanced life dimension, destroyer and creativity, human revival cycle, welfare of the entire universe and human civilization.


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति, महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।



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मांँ दुर्गा के नौ रूपों से हम क्रमशः इस प्रकार परिचित हैं-- पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंदमाता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री।



1- शैलपुत्री देवी माता --

हिमालय का एक नाम शैलेंद्र या शैल भी है। शैल का मतलब पहाड़ या चट्टान से है। देवी दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर जन्म लिया। पार्वती की माता का नाम मैना था। इसीलिए देवी पार्वती का पहला नाम पड़ा शैलपुत्री अर्थात हिमालय की पुत्री। शैलपुत्री होने के नाते मांँ यह सिखाती है कि मानव समाज का चरित्र, कार्य और जीवनशैली पर्वत की तरह अडिग और विशाल होनी चाहिए। शैलपुत्री माता की पूजा अर्चना रोजगार, धन-धान्य और स्वास्थ्य में गुणात्मक वृद्धि करती है।



2- ब्रह्मचारिणी देवी माता --

ब्रह्मा के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलाने वाली और ब्रह्मा की प्राप्ति एवं उनके जैसे आचरण को दिलाने वाली, जीवन में नियम, संयम और तत्परता से जीवन की सफलता के सैद्धांतिक सूत्रों को प्राप्त कराने वाली और अनुशासन एवं चरित्र की शक्तियों को संचित करते हुए अलौकिक शक्तियों की आराधना कर मानव कल्याण कराने वाली माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना इस दिन को महत्वपूर्ण बनती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है, जो ब्रह्मा के द्वारा बताए गए सत्य आचरण पर चले। ब्रह्मचारिणी माता की पूजा से कई सिद्धियांँ प्राप्त होती हैं।



3- चंद्रघंटा देवी माता --

जिसके ललाट पर घंटे के आकार का चंँद्रमा सुशोभित है, ऐसी आत्मिक शांति, समृद्धि प्रदान करने वाली माता का नाम चंद्रघंटा है। यह संतुष्टि की देवी है। मनुष्य संतुष्ट होगा तो जीवन भी शांत होगा। अशांत व्यक्ति जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता है। जीवन की आत्मिक सुख शांति समृद्धि के लिए माता चंद्रघंटा की आराधना जरूरी हो जाती है।



4- कुष्मांडा देवी माता --

ऐसा माना जाता है कि कुष्मांडा देवी की मृदु-मधुरिमा मुस्कान से संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है । भय का नाश करने वाली, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली, कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप मानव जीवन के विकास की कथा कहता है। ब्रह्मांड की रचना करने के कारण ही इस देवी का नाम कूष्मांडा पड़ा है। सौहार्दपूर्ण जीवन के लिए कुष्मांडा देवी की पूजा अर्चना महत्वपूर्ण बन गई है।



5- स्कंदमाता --

कार्तिकेय शिव और पार्वती के पुत्र हैं । उनका एक अन्य नाम स्कंद है। कार्तिकेय यानी स्कंद की माता होने के कारण देवी के पांँचवें रूप का नाम स्कंदमाता है ।शक्तिदायक माता की पूजा अर्चना मानव कल्याण के लिए सकारात्मक प्रयास करती है।



6- कात्यायिनी माता --

मांँ कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री है। कात्यायन ऋषि ने घोर तप किया। तप करने के उपरांत माता दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया। कात्यायन ऋषि की बेटी होने के कारण ही देवी का नाम कात्यायिनी पड़ा। देवी अपने भक्तों को रोग, शोक, संताप से मुक्त करती है। देवी की पूजा-अर्चना इस दिन को महत्वपूर्ण बनाती है।



7- कालरात्रि माता --

काल की देवी है मांँ कालरात्रि सभी ऋद्धियांँ और सिद्धियांँ, माता कालरात्रि की अलौकिक शक्तियों, तंत्र-मंत्र, पूजा-प्रतिष्ठा से पूर्ण होती हैं। यह सिद्धियांँ प्राप्त कराने वाली देवी है। काल की देवी जो काल से भी विजय प्राप्त कराने में सक्षम है । जीवन में निरंतर प्रगति पाने के लिए माता कालरात्रि देवी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। देवी कालरात्रि की पूजा अर्चना का महत्व इस दिन को विशेष बनता है।



8- महागौरी माता --

माता पार्वती अपने सबसे उत्कृष्ट और अनुपम स्वरूप में महागौरी के रूप में प्रकट हुई हैं। देवी का आठवांँ स्वरूप महागौरी का है। गौरी पार्वती का प्रतीक है और महागौरी मांँ पार्वती का उज्ज्वल, श्वेत, निर्मल स्वरूप है। चरित्र की पवित्रता, निर्मलता और पावनता जीवन में सफलता और निष्कलंक चरित्र निर्माण के लिए माता महागौरी भक्तों को आशीर्वाद देती है। इस दिन माता का स्मरणोत्सव मानव चरित्र को निष्कलंक बनाता है। पापमुक्त , भयमुक्त करता है। जो सच्चे मन से मांँ का स्मरण एवं पूजा अर्चना करता है, माता उस पर अपनी कृपा करती है।



9- सिद्धिदात्री माता--  

कैलाशपति, अर्द्धनारीश्वर भगवान शिव भी जिनकी शक्तियों एवं सिद्धियों की स्तुति एवं शक्ति प्राप्त करते हैं, ऐसी देवी मांँ संपूर्ण सिद्धियों की मूल हैं। सिद्धिदात्री माता मानव कल्याण के लिए अवतरित हुई हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, लक्ष्य भेदने के लिए, नैतिक आचरण एवं जीवन चरित्र को निर्मित एवं सकारात्मक चरित्र निर्माण के लिए माता की आराधना एवं स्तुति वंदनीय है। शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में जो आधी देवी हैं वह सिद्धिदात्री माता ही हैं।


©डॉ. चंद्रकांत तिवारी 

उत्तराखंड प्रांत 

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

हिमालय का आदर्श -- ©डॉ. चंद्रकांत तिवारी -उत्तराखंड प्रांत

 हिमालय का आदर्श --

(आंँखों पर हिमालय)

©डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 


The development of overall personality is formed by the conduct, thoughts, imagination, intellectual environment and sociality as well as the sense of coordination of each person.

The greater the ideal of a particular person or institution, the more extensive and permanent will be the sociality of that person and institution.



“The Himalayas have seen totality in smallness and smallness in totality.”

It depends on us, how we are seeing the scenes visible or reflected in front of us.


हिमालय को आत्म-प्रशंसा या प्रशंसा की आवश्यकता नहीं। व्यक्ति-विशेष या व्यक्तिगत भावनाओं को आत्म-प्रशंसा की आवश्यकता है। व्यक्ति आत्म-प्रशंसा से कब बाहर निकलेगा? कहना मुश्किल है, जबकि वह हिमालय के समक्ष एक सूक्ष्म बूंद या अंश मात्र है। हिमालय के अपार प्राकृतिक दृश्य और उसकी ज्ञान परंपराएं अतुलनीय हैं। यह व्यक्ति-विशेष की निजी क्षमता एवं दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह कितना और कहांँ तक देख सकता है और कितनी सहजता से उसे आत्मसात कर सकता है।


हिमालय से हज़ार गंगा धाराएं निकलती हैं। हिमालय के विशाल अमृत सागर से हजार धाराएं लोक मानस के कंठ को भिगोती हैं। दिव्य हिमालय-सा सतगुरु ईश्वर का व्यक्तित्व और आदर्श मनुष्यता को अमृत की बूंदों का रसपान कराता है। विशाल हिमालय से असंख्य धाराएं जब निकलती हैं तो विद्यार्थी की तरह निर्मल समाजसेवी बनकर भावी समाजिक परिधि को गति प्रदान करने के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की संभावनाओं को भी सक्षम बनाती हैं।


     विशाल हिमालय रूपी कविता के समक्ष कवि हृदय, सहृदय स्वयं में एक छंद है। विशाल गिरिवर के समक्ष कवि हृदय स्वयं एक छोटा सा अंश मात्र है। हिमालय का व्यक्तित्व कुछ इसी तरह प्रतीत होता है। हिमालय की गरिमा को लिए प्रत्येक कवि अपने मन के भीतर कई बार पिघलता हुआ स्वयं में अपनी कविता का मार्ग तय करता हुआ शांत होकर शीतल जल-धारा की तरह बहता रहता है। यह निरंतरता ही जीवन का सौभाग्य संगीत है। अनवरत यात्रा का गवाक्ष हिमालय-सा आदि पुरुष प्रत्यक्षदर्शियों और स्वप्नजीवियों के लिए सदियों से प्रेरणा का स्रोत बना है।


हिमालय का कौमार्य सदा ही प्रेरणा का अजस्र स्रोत रहा है। ना चाहते हुए भी सहृदय, कवि हृदय बन कविता को सहेजने की ओर प्रेरित हो जाता है। नैसर्गिक सौंदर्य कविता की जननी है। कविता की उत्पत्ति और विकास की संभावनाएं सब प्रकृति सौंदर्य में निहित हैं। कवि मात्र शब्दों का चयन करता है। रेखाचित्रों को शब्दचित्रों में पिरोने का कार्य कवि प्रकृति के बिम्बों को देखकर ही करता है। अतः जिस कविता में जितने सकारात्मक बिम्ब होंगे वह कविता उतनी सकारात्मकता के साथ सहृदय, कवि हृदय के साथ तादात्म्य स्थापित कर पाएगी।


तुम दिव्य-हिमालय मैं लघु सरिता

तुम शब्द हजार मैं छंद-कविता 

तुम गिरिवर पाषाण-प्रचंड 

मैं ओट तुम्हारी मानस-खंड ।


    मौन रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है । शांत रहकर भी जीवन संगीत एवं उसकी गतिविधियों को संचालित करते हुए, प्रकृति-प्रांगण के सम्मुख बैठे व्यक्ति के अंतर्मन को पढ़ा जा सकता है। अपनी स्वच्छंद आंँखों से विद्यार्थी या जिज्ञासु साधक के अंतर्मन के दृश्य-पटलों को एवं उसकी विभिन्न गतिविधियों को समझते हुए, मरहम के रूप में अपनी बातों द्वारा सही दिशा संकेत देते हुए, पथ-प्रदर्शक की भांँति राह पर लाकर गंतव्य तक पहुंँचाना कुछ इस प्रकार का व्यक्तित्व प्रकृति बिम्बों का हिमालय प्रदेश में देखा जा सकता है। हिमालय बहुत कुछ सिखाता है। 


हिम शिखरों का पर्वतीय सौंदर्य निर्विकार, अनादि, अनंत, स्वरूपानंद है। कल्पनाओं का विशाल श्वेत शिखर कब अपने सौंदर्य की राशि लुटाता है? यह अकथनीय है और अकल्पनीय भी।


कभी-कभी हिमालय के चेहरे पर हाव-भाव उभर आते हैं। एक स्वच्छंद बालक की हंसी दोनों विशाल गालों में पढ़ने वाली लंबी सी रेखाएं मुख मंडल की आभा को दो हिस्सों में विभाजित कर देती हैं। आंँखों के दो प्याले अतल गहराइयों में तरलता के भाव लिए अंतस की परिधि के प्रकोष्ठों द्वारा स्वयं से आत्म साक्षात्कार करते हुए हृदय की गहराइयों में असंख्य जज्बातों के समंदर को लेकर कभी श्रृंग कभी गर्त की भांँति प्रकृति-प्रांगण के सम्मुख बैठे व्यक्ति या कवि हृदय के अंतर्मन पर समतल-सा मार्ग तय करते हैं।


     मैं जब भी विशाल प्रांगण के सम्मुख जाता हूंँ एक बात हमेशा मुझे ध्यान आकर्षित करती है कि जब भी कभी मैं उपत्यका की तलहटी में बैठता हूंँ तो इसका विशाल फलक आकर्षित किए बिना नहीं रहता। सम्मोहन इसके परिवेश में रचा-बसा है। जीवन की मोक्षस्थली का केंद्र यहीं है। सभी शक्तियों का समुचित केंद्र भी।


हिमालय का व्यक्तित्व महान है। हिमालय की सरलता और तरलता व्यक्ति को समाजिक सौहार्द बनाए रखने में मदद करती है। व्यक्ति विशेष और साधारण को अतिसाधारण बनाती हैं। पास बैठे व्यक्ति को सामर्थ्यवान बनाते हुए प्रेम-सौंदर्य की अतल सीमाओं में स्वच्छंद गति से उड़ने की शक्ति और अंतर्मन में पड़ने वाले विभिन्न आयामों पर नैतिक चरित्र के अपार दृश्य को अवतरित करती है। मुख मंडल पर श्वेत शिखर की पवित्र लालिमा हमेशा ही आकर्षक मुस्कान और हृदय में प्रेम की अपार राशि, सम्मुख प्रकृति-प्रांगण में बैठे व्यक्ति पर आशीर्वाद के लिए सदा विनम्र बने रहना सिखाती है। साधारण व्यक्ति के जीवन में असाधारण सौंदर्य रूप राशि से भर देती है।


समग्र व्यक्तित्व का विकास प्रत्येक व्यक्ति के आचरण, विचार, कल्पना, बौद्धिक परिवेश और सामाजिकता के साथ-साथ समन्वय की भावना से बनता है। जिस व्यक्ति विशेष या संस्था का आदर्श जितना बड़ा होगा उस व्यक्ति एवं संस्था की सामाजिकता भी उतनी ही विस्तृत और स्थायी होगी।


"हिमालय ने लघुता में समग्रता को और समग्रता में लघुता को देखा है।" यह हम पर निर्भर करता है, कि हम हमारे सामने दिखने वाले या प्रतिबिंबित होने वाले दृश्यों को किस रूप में देख रहे होते हैं। सहजता और संवेदना, स्वीकारोक्ति और आत्मीयता, परिपक्वता और परिपूर्णता आत्मिक संवेदनाएं हैं। यह सब श्रृद्धा का विषय है। जिन पत्थरों को साधारण व्यक्ति मात्र देखा करता है, उन पत्थरों को ही साधारण श्रृद्धावान पूजते हैं।


हिमालय जीवन का यथार्थ वैभव है। यह वर्तमान से कहीं अधिक अतीत की स्मृतियों का तेजस पुंज है। एक-एक पवित्र बूंदों का समुच्चय है। एक वैभवशाली इतिहास का मेरुदंड है। कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का एकमात्र साधक एवं यथार्थजीवी। यह तपस्वी ज्ञान परंपरा की पुण्य स्थली भी। 


जीवन के यथार्थ दृश्यों को हम किस रूप में देखते हैं, किस रूप में महसूस करते हैं, महसूस करने के बाद क्या हम उन साक्षात दृश्यों/वस्तुओं से अपनेपन का लगाव रख पाते हैं? ऐसा लगाव जो हमें बार-बार अपनी ओर आकर्षित करता हो। हमारे मन की रिक्तता को पूर्ण करता हो। हमारे जीवन के अवकाश को इंद्रधनुषी रंगों से भर देता हो। हमारी विषम और कठिन बनती जा रही जीवनशैली को सरल और सहज बना देता हो। हमारी कम पड़ती श्वांसों के मध्य रक्त का संचार करता हुआ जीवन की लालिमा के नए दृश्यों को उभरता हो। यह संभव है कि हम अंतिम स्पंदन तक स्वयं से ही संघर्ष कर रहे होते हैं परंतु जो प्रकृति सौंदर्य हमने अपने लिए निर्मित की है वह एक ऐसी दुनिया है जो दो सगे-संबंधियों के अकेलेपन से भरी हुई है। जैसे जीवन का संगीत रिक्त हो गया है जीवन की तलाश में भटकता हुआ कवि हृदय शून्य की परिधि पर घूम रहा हो। स्वयं के प्रश्नों में ही उत्तर को तलाश कर रहा हो। कवि हृदय कई सौ हृदयों का समुच्चय है। उसकी अभिव्यंजना और अभिव्यक्ति से पहले उसकी देखने की शक्ति, स्पर्श और गंध के अनुभवों का साक्षात् बिंम होती है। हवाओं में तैरता हुआ संगीत कवि की सांसों में घुलमिल कर साकार हो जाता है। यह सब एकांत की वीणा से निकला हुआ नादमय संगीत है। जीवन का वास्तविक जयघोष है। यही गुरु परंपरा की लोक संस्कृति का उत्थान मंच है। यही गुरुत्व शक्तियों की गतिविधियों का आत्मिक दर्शन जो व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से व्यष्टि एवं मानवता की जन्मभूमि की विकास यात्रा का अंतिम और प्रारंभिक प्रस्थान बिंदु है। हिमालय इन सब बातों का एकमात्र गवाह है। हिमालय से कुछ छिपा नहीं है। हिमालय प्राकृतिक सौंदर्य का उपहार है। प्रकृति का अनुपम आभूषण है हिमालय।

 प्रकृति स्वयं में ईश्वर है। ईश्वर कहीं और नहीं। हमारे परिवेश और मिट्टी के कण-कण में ईश्वर है। 

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

"प्रेरणा का प्रतिफल, जीवन का सकारात्मक बिंब है"- © डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत

 

"प्रेरणा का प्रतिफल, जीवन का सकारात्मक बिंब है"- 

© डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत  

"Motivation teaches social students to live psychologically. There is a lot in life that can be achieved with the help of inspiration. Inspiration gives direction and vision like a guru. And like a mother, she also gives direction and love. A little inspiration makes an ordinary person extraordinary."


प्रेरणा व्यक्ति को कार्य के प्रति सकारात्मक रूप से जोड़ते हुए, जीवन जीने की नई दिशा की ओर, शत प्रतिशत ईमानदारीपूर्वक, कर्तव्यनिष्ठ और जुझारू व्यक्तित्व की दिशा की ओर लेकर जाती है। कहने का मतलब है कि प्रेरणा व्यक्ति को उसके लक्ष्य की ओर तीव्र गति से पहुंचाने में अपूर्ण योगदान को पूर्ण करती है।


जीवन में हम अपनी दैनिक / दिनचर्या में काम करते-करते कभी ना कभी निष्क्रिय से होने लगते हैं। परंतु एक छोटी-सी प्रेरणा हमें कार्य के प्रति गुणात्मक और सकारात्मक दिशा-दृष्टि प्रदान करती हैं।


अध्यापक का विद्यार्थी के प्रति प्रेरणा देना, माता-पिता का अपने पुत्र को प्रेरणा देना, मित्र का अपने समकक्ष मित्र को प्रेरणा देना, पति-पत्नी एवं साथ जीवन यापन करने के साथ-साथ सहयात्री और सहपाठी, सहमित्र सभी कहीं ना कहीं आपस में एक दूसरे को सकारात्मक रूप से प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। जिससे आपसी रिश्ते मधुर एवं रसमय बन जाते हैं और उनमें नई स्फूर्ति एवं ताजगी निराशा को समाप्त कर देती है। जीवन जीने की एक नई कला व्यक्ति के मन के भीतर सकारात्मक प्रेरणा का सृजन करती है। मांँ अपने पुत्र को जीवन भर आशीर्वाद के रूप में प्रेरणा प्रदान करती रहती है। पिता अपने बच्चों के प्रति अपने दैनिक कार्यों में संलग्न रहकर जो कमाई करता है एवं पसीना बहाता है वह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अपने ही बच्चों को प्रेरणा प्रदान कर रहा होता है।


यह जीवन की कथा है। इस कथा में सूत्रधार और सभा में उपस्थित सभी जनसमुदाय आपसी संवेदनाओं से जुड़े रहते हैं । वही संवेदना एक दूसरे को भावात्मक रूप से प्रेरणा प्रदान करती रहती है । जीवन में प्रेरणा बहुत जरूरी है । ऐसी प्रेरणा जो साधारण व्यक्ति को साधारण बना देती है । निठल्ले और कामचोर व्यक्ति को परिश्रमी और ईमानदार बना देती है । छोटे व्यक्ति को बड़ा कद प्रदान करती है और बड़े व्यक्ति को छोटे व्यक्ति के साथ सामंजस्यपूर्ण व्यवहार स्थापित करने की शक्ति प्रदान करती है। हालांकि बड़ा व्यक्ति वह है जो छोटे व्यक्ति को छोटेपन का एहसास न होने दे , परंतु प्रेरणा सर्वोपरि है। व्यक्ति की आंँखों के भीतर एक ऐसी चमक पैदा कर देती है जिसकी चमक रूपी ईंधन से व्यक्ति जीवन के प्रति सकारात्मक भावों से भर जाता है। व्यक्ति अपने सम्मुख बैठे व्यक्तित्व के साथ मित्र भाव से जीवन जीने की कला सीखना और सिखाता है। हालांकि सीखना और सिखाना एक सतत प्रक्रिया है । परंतु फिर भी इस सतत प्रक्रिया में प्रेरणा अति आवश्यक है। शिक्षक की हैसियत से प्रेरणा विद्यार्थियों के लिए अमृत की बूंदों के समान है। 


जीवन एक सकारात्मक नदी की भांँति अपने गंतव्य की दिशा में सतत और अनवरत रूप से बहती रहती है। राह में पढ़ने वाले पत्थर, कंकड़, धूल, मिट्टी, हलचल पैदा करती लहरें, उठती गिरती लहरें, अनुशासन भरी लहरें यह सभी कहीं ना कहीं आगे बढ़ाने की प्रेरणा और निरंतर गति प्रदान करती हैं। यह निरंतरता और सततता , क्रियाशील रहना ही नदी को नई दिशा और जीवन देता है। राह में बाधा पहुंँचाने वाली विपरीत परिस्थितियां , स्थायी मनोबल एवं आत्मबोध को जागृत करते हुए, निरंतर प्रेरणा प्रदान करती हैं। समाज का विस्तार बहुत बड़ा है। समाज प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से व्यक्ति को प्रेरणा प्रदान करता है। सामाजिक प्रेरणा व्यक्ति को समाज में घुलने-मिलने के बाद स्वत: ही मिल जाती है। विषम परिस्थितियों में भी सामाजिक प्रेरणा व्यक्ति को एक सकारात्मक व्यक्तित्व प्रदान करती है और लक्ष्य की ओर सीमित उद्देश्यों को प्राप्त करते हुए, विजयश्री का शंखनाद फूंकती है। आत्मविश्वास का जयघोष स्थापित करती है। नि:संदेह सब जीवन में प्रेरणा का प्रतिफल है। प्रेरणा अत्यावश्यक है। 


प्रशंसा करना और प्रेरणा देना दोनों में बहुत बड़ा अंतर है । प्रशंसा का क्षेत्र सीमित और व्यवहार जनित है। प्रेरणा ईश्वरीय गुण है और प्रशंसा मानवीय प्रवृत्ति का नैसर्गिक चरित्र । प्रशंसा के पीछे स्वार्थ निहित रह सकता है। परंतु प्रेरणा व्यक्ति को सद्चरित्र और निःस्वार्थ भाव से भर देती है। प्रेरणा व्यक्ति के सम्मुख एक आदर्श पाठ स्थापित करती है। व्यक्ति के भीतर अगर आत्मबल और आत्मबोध निहित हो तो वह नकारात्मकता से भी सकारात्मक प्रेरणा ग्रहण कर सकता है। कभी-कभी प्रेरणा प्रदान करने वाला व्यक्ति ईश्वर के रूप में प्रतीत होता है। प्रेरणा का प्रतिफल, जीवन का सकारात्मक बिंब है। जीवन में प्रेरणा प्रदान करते रहें यह समाज और राष्ट्र के हितार्थ होगा। प्रेरणा प्राप्त करने वाले से अधिक देने वाले को महान बनाती।

मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023

Have we ever felt the nature around us? ©Dr. C K Tewari

 Have we ever felt the nature around us?

Dr. C K Tewari 

*Once make a small effort to see the nature around you within your mind, then see with your open eyes what do you see around you?*

There are so many things around us, but we are able to have a sense of familiarity and ease with only a few things.

Do we ever gaze at the beauty of nature for long?

Nature surrounds us, imprisons us in its periphery and gives freedom to live life.

Maybe we haven't seen nature properly yet! Because as much as we see nature, it always seems new, attractive and full of entertainment to us in different forms, in different dimensions.

In this way it can be said that….

"Nature is as old as the world and as new as each moment."

Always be devoted to your nature, your country, your soil, your people, your nation and your motherland.🇮🇳🙏

सोमवार, 2 अक्टूबर 2023

Nationalism gives strength to conduct - ©Dr. Chandra Kant Tewari

 Nationalism gives strength to conduct -

©Dr. Chandra Kant Tewari 

Language, literature, culture and religion continuously control, discipline, reconstruct and revive the society. It integrates the society into a single thread by combining cultural traditions and religious sentiments of spirituality. Establishes a distinction between moral and immoral. Constantly searching for the character of ideal humanity.

These are the four chapters of life society. We all find these four pillars within us. For the unity and nationalism of the nation, it is necessary to have the above mentioned four pillars. Life can be enriched only through language, literature, culture and religion. All elements merge in religion. Religion is the foundation of conduct. Conduct keeps religion alive for ages.

Religion is the inner language of life. Religion is a matter of philosophy, not of demonstration. If a determined person does not develop a sense of belonging towards the nation by taking a handful of soil, does not have goodwill for his nation, then it is useless to have such a person. Such a thinking man with limited limits is himself thoughtless. Whose borders are incapable of even protecting the country's borders.

Civility of conduct makes a person civilized. But before that a person has to revive his own thoughts through religious spirituality and cultural awareness. Culture can also be great only when religion remains action-oriented and moves on the steps of progress.

Sanskar is the primary school of culture. Decides the direction and condition of life in small infants. It can be said that the primary basis of education flourishes and blossoms in values only. By giving direction to values in small newborn babies, we are completing the conduct of religion itself.

Religion is a natural quality of human nature. This is nature given. We can never turn away from religion. As long as we are living on this earth, we are performing Dharma directly and indirectly. Because religion is the true character of faith and belief. Religion provides strength to a person. True religion is inspired by national sentiments and has the dream of sacrificing everything for the nation. It makes an ordinary person extraordinary. To keep it revived, alive and vibrant, a person has to set high ideals and goals. It is sacred and vast like the Himalayas, a symbol of courage and juicy mysteries.

A person who is perfect in religious conduct achieves a vision of God also. The pain of the society and the concern of the society always remain in the heart of such a person. Ultimately the moral character of religion lies in service to the nation.

Nationalism inspired by national sentiment is also a combination of language, literature, culture and religion. This is the ideology of language. It is the written form of literature. Culture is a coordinated form of civilizations and traditional knowledge. The philosophy and integration of religion is an authentic document of human concerns driven by spiritual practice. Religion is paramount and spiritual images have a moral character. Because it is a coordinated form of emotion, action and knowledge.

Religion makes a person's personality a Yogi. The spiritual form of religion helps a person to behave decently. At the same time, the practical form of religion teaches us to remain connected to the world of life. Having God and having religion is the same thing, there is not much difference.

There is no certificate of nationalism. This is the result of service to the country and 100% work in the field. When a person controls his society by connecting with his environment and increases the prestige of his province, then religion is working in a positive direction.