*अध्यात्म और अध्ययन*
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
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आकाशे मुखि औंधा कुवाँ,
पाताले पनिहारी ।
ताका पानी कौउ हँसा पीवै,
विरला आदि विचारी ।।
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निर्गुणियांँ कबीर साहब की उलटबांसी आध्यात्मिक सत्य ज्ञान का अजस्र स्रोत है।
प्रयोगधर्मी अज्ञेय की असाध्यवीणा के झंकार की तरह भीतर से बाहर की प्रकृति एवं ऊर्जा से तादात्म्य स्थापित करना, मधुमति भूमिका में योगी की आध्यात्मिक महामाया, भक्तिमय शक्ति से स्वयं को परिशोधित एवं साधने की कला में निपुण आकर्षक चरित्र वाला ही , "आकाश में मुख वाला, उलटा कुआँ, पाताल में पानी भरने वाला।" उक्ति की स्थिति को समझ सकता है। प्रतिभावान कवियों की अनुभूति से मिलने वाला जीवन रस सहृदय पाठक को साधारणीकृत तभी कर पता है जब वह योगी की मधुमती भूमिका से संबंधित होता है। साधारणीकरण नैसर्गिक मूल प्रवृत्ति है। यह भीतर से बाहर की आध्यात्मिक शक्ति ही है। यहांँ आध्यात्मिक शक्ति का बहुत गहरा दृष्टांत है कि "आकाशे मुखि औंधा कुआँ, पाताले पनिहारि" ..!
नोट - जिस प्रकार कक्षा-कक्ष शिक्षण को फ्लिप्ड लर्निंग द्वारा अर्थात पलटकर शिक्षण की पद्धति में नवीनतम अनुप्रयोग स्थापित कर सीखने में मदद एवं सुधार होता है ठीक उसी तरह हमें अपनी सोच को उलटना होगा, अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करना होगा और बाहरी दुनिया की मोह, माया, लोभ, स्वार्थ से दूर रहना होगा। कठिन तो है यह सब पर नामुमकिन नहीं। यह भावबोध से आध्यात्मबोध की यात्रा है। इतनी भी सरल नहीं।
मंगलमय जीवन पथ🙏🕉️
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
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