ईगास पर्व लोक की संस्कृति और संस्कृति के लोक का, सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का महापर्व है -
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
(दीपावली के 11 दिन बाद मनाना जाने वाले ईगास पर्व पर समस्त उत्तराखंड प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं)
ईगास उत्तराखंड की समृद्ध लोक सांस्कृतिक विरासत का महापर्व है।
श्रीराम चंद्र जी के लौटने की सूचना देरी से मिलने पर -
(मान्यता है कि श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोकमानस ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। परंतु गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र में श्री राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली।)
लोक मान्यताएं एवं लोक विश्वास -(गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र में)
1- क्षेत्रीय ग्रामीणों ने अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए एकादशी को ईगास के रूप में दीपावली का उत्सव मनाया।
2- अन्य के अनुसार ठीक इसी वक्त गढ़वाली वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी। दीपावली के बाद ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाली सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों की वापसी अर्थात घर पहुंँचने की प्रसन्नता में उस समय दीपावली का ज्योति पर्व ईगास के रूप में मनाया गया।
3 आज हरिबोधनी एकादशी भी है । आज ही ईगास पर्व के दिन श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। आज के ही दिन विष्णु पूजा का भी विधान है।
4- एक अन्य दृष्टि कि उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है। सभी देवी-देवताओं ने इस दौरान पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की। क्योंकि आज विष्णु भगवान जागृत हुए इसीलिए ईगास पर्व को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
5- वैसे इसे ही ईगास-बग्वाल भी कहा जाता है।
6- एक अन्य नाम लोकपर्व ईगास यानी बूढ़ी दीपावली भी कहा जाता है।
कार्यक्रम -
(सांस्कृतिक लोक दृष्टि)-
1- इस दिन भैलो खेल (आग का खेल) होता है ।
2- इस दिन गोवंश की पूजा-अर्चना करते हैं।
3- कार्यक्रम द्वारा लोक संस्कृति के संरक्षण और क्षेत्रीय एकता का संदेश दिया जाता है।
4- ईगास पर्व केदार-मानस की सांस्कृतिक पृष्टभूमि का लोक पर्व है ।
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी
Fb-Chandra Tewari
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