भाषा का सामाजिक व्यवहार - ©डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत
भाषा का सामाजिक व्यवहार -
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत
शब्दों का असर और प्रभाव सामाजिक व्यवस्था और साधारण जन-जीवन में लम्बे समय तक बना रहता है। शब्दों की ध्वनि प्रत्यक्षदर्शियों को परोक्षरूपेण प्रभावित करती रहती है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भाषा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को तेज और निस्तेज, आकर्षित और प्रतिकर्षित, कर्मवीर और कर्महीन बनाती है। व्यक्ति के कर्मों की ध्वनि शब्दों से ऊंची होती है। शब्द और व्यावहारिक आचरण ही व्यक्ति को कर्मवीर बनाता है। मनुष्य जीवन और भाषा का घर दीवारों और ईट गारे से ही निर्मित नहीं होता है। घर तो बनता है मन की समृद्धि से, अपनत्व के भाषिक संगठन से। घर की समृद्धि से कहीं अधिक मन की समृद्धि बहुत बड़ी चीज है। मन की समृद्धि के लिए दूसरे के सुख में अपने सुख को तलाश करना पड़ेगा और दूसरे के दुख में सहभागी बनना पड़ेगा। कुल मिलाकर समृद्धि का भाव तभी जागृत होगा जब सुख के साथ-साथ दुख का भी बराबर में हिस्सा हो। दूसरे के तवे में रोटी सेंकने का भाव त्यागना होगा तो वहीं बहती गंगा पर डुबकी मारने का विचार कर्तव्यबोध से विमुख बनाता है। हमें राजनीति के जंगल में घुसकर दंगल करने की आवश्यकता नहीं। राजनीति घने जंगल का रास्ता है जिसमें साधारण व्यक्ति अपने घर का मार्ग तलाश कर रहा होता है। जीवन एक फूल है और प्रेम उसकी सुगंध। हम जैसे फूल उगाएंगे हमें वैसी सुगंध मिलेगी। हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां नागफनी के कांटे हैं तो गुलाब के फूल भी हैं। हमारे गुलाब में कांटे भी हैं परंतु यह कांटे गुलाब की रक्षा के लिए ही होते हैं। प्रकृति ने हर खूबसूरत वस्तु को नैसर्गिक सुरक्षा प्रदान की है। परंतु हमें काले और गोरे रंग का भेद नहीं करना चाहिए। प्रकृति में भी काली और गोरी नदियां बहते हुए संगम में एक साथ पुनः मिल जाती हैं। बड़े-बड़े महासागरों में गर्म और शीतल जलधारा आपस में मिलकर कई जीवों का निवास स्थान होती हैं। परंतु जीवन का एक सत्य यह भी है कि छोटी मछलियां बड़ी मछलियों का ही आहार बनती हैं। राजनीति भी समुद्र की उस मछली के समान है जिसको हजम करना इतना आसान नहीं है। देश को चलाना साधारण व्यक्ति का असाधारण कार्य होता है। असाधारण होने के बाद भी व्यक्ति साधारण बना रहे तो वही व्यक्ति देश का नेतृत्व और संपूर्ण विश्व में प्रेम और आदर्श स्थापित कर सकता है। यही भाषा का सामाजिक व्यवहार है। जिसका आधार मनोवैज्ञानिक है। भाषा के सकारात्मक बिंब व्यवहार में उतर जाएं तो व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से संपन्न हो जाता है। वहीं भाषा के नकारात्मक बिंदुओं को अगर हृदय में निवास दिया तो सामाजिक आघात और निजी हृदयाघात दोनों ही सामाजिक व्यवस्था को क्षतिग्रस्त करेंगे। यह हमारी पात्रता होगी कि हम किसका चयन करें और किसका त्याग।
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