देव-मंदिर प्रकृति के अंश मात्र बिंब...!
डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माहि ।
ज्यो घट घट राम है, दुनिया देखे नाही ।
कबीर दास जी ने ईश्वर की महत्ता बताते हुये कहा है कि कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है ,लेकिन इससे वो अनजान हिरन उसके सुगन्ध के कारण पूरे जगत में ढूँढता फिरता है ।ठीक इसी प्रकार से ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में निवास करते है, परन्तु मनुष्य इसें नही देख पाता । वह ईश्वर को मंदिर ,मस्जिद, और तीर्थस्थानों में ढूँढता रहता है ।
कबीर ने अन्यत्र भी कहा है कि -
मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में,
ना काबे कैलाश में ।
मैं तो तेरे पास में ।
निस्संदेह देव मंदिर आस्था के आध्यात्मिक केंद्र हैं। मनुष्य अपनी निष्क्रिय पड़ी हुई आध्यात्मिक चेतना को जगाने के लिए आस्था के केंद्र मंदिरों का भ्रमण करता है। परंतु आध्यात्मिक चेतना के लिए भक्तिमय होकर अपने आराध्य देव को ढूंढने का प्रयत्न करता है।
अनुभूति की अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की अनुभूति ही आध्यात्मिक चेतना है। मंदिर वह पवित्र स्थान है जहांँ दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है।
उत्तराखंड देवभूमि स्थान-स्थान पर देवी-देवताओं के मंदिरों से पवित्र भूमि का वरण करती है। यहांँ हिमालय से निकलने वाली मोक्षदायिनी मांँ गंगा शिव जटाशंकर त्रिदेवपुरी को भी नित-नित पावन करती है। यहांँ भक्ति पत्थर, मृदा,घाट, जल, वृक्ष, पहाड़ कई रूपों में दिखेगी। यह सभी स्थानीय पूजनीय स्थल हैं।
भक्ति का स्वरूप तो सगुण और निर्गुण है। किसी ने मूर्तियों में अपने ईश्वर की तलाश कर ली और किसी को प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का रूप दिखाई देता है । परंतु ईश्वर कहांँ है ? हम ईश्वर की तलाश क्यों करते हैं ? हम मंदिर क्यों जाते हैं ? यह स्वयं में शोध का विषय है। क्योंकि मनुष्य स्वयं की तलाश करते-करते एक ऐसे एकांत की तलाश करता है जो विभिन्न संस्कृतियों का नादमय सौंदर्य है और ऐसा सौंदर्य जो एकांत के उपजता है और पनपता है । मनुष्य को अकेला ना होकर एकांत प्रिय होना चाहिए। क्योंकि एकांतप्रिय सृजनात्मकता का प्रतीक है। नवाचार का प्रतीक है। तभी वह अपने ईश्वर की तलाश कर सकता है । हालांकि मंदिर की संरचना अपने आप में अलग है। नि:संदेह मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थान है जहांँ हम सभी स्वार्थ भावनाओं से ऊपर उठकर परमार्थ की तलाश करते हैं अर्थात आत्म साक्षात्कार करते हैं।
प्रकृति सभी की जीवन सहचरी है। आधार स्थली है। यह सभी का साक्षात्कार करती है, अपने मौन प्रश्नों से। जिसके उत्तर लिखित कम प्रायोगिक अधिक हैं।
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