शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

Nation is the only option above all - Dr. Chandra Kant Tewari - UTTARAKHAND - BHARAT

"Nation is the only option above all"

@Dr. Chandra Kant Tewari

UTTARAKHAND - BHARAT

The foundation of Indian culture and Indian knowledge tradition is nationalism, the feeling of dying for the nation, the feeling of sacrificing everything and becoming a world conqueror, the feeling of molding Indian culture, tradition and modernity in language, literature and cultural conduct and at the global level. But the feeling of making one's own stability can be seen as "Nation is the only option above all".

First of all, I am a common man from Bharat. I know how to repay the debt of my tradition and soil by giving place to the awakening song of India's cultural traditions in the heart temple. I am an ordinary person from Bharat and want to spread the sound of Hindutva in the whole world.

I am made of the soil of God's birthplace. I am made of the touch of every person of Bharat, the workers, the youth, the mother who gave birth, the sensitivities that provide unbreakable trust in relationships, the earth, fire, air, sky and the touch of Mother Ganga that provides salvation to life. . That is why I am an ordinary person of Bharat and am always ready to sacrifice for the nation while doing extraordinary work.

“Me for my country” is the only aim of my life. We have to move forward with the development journey of modern society, keeping our ancient culture intact. We have to recognize ourselves.

We should not forget who we were? Our past was glorious and rich. We were rich in character. Our country and countryside have always been rich in character. Many students are spreading knowledge and science in their countries by taking education from our country. India is a country of Guru tradition. Foot journeys have been undertaken here by saints like Guru Nanak Ji for the development of humanity.

We saw God in the stone and worshiped him. He kept Ganga in his head and gave her the status of mother. We worship the sun, moon and stars. This is our Bhartiya knowledge tradition. We have established all the principles and objectives of life on the formula “Atithi Devo Bhava”. Vedas, Upanishads and epics all present glimpses of Bhartiya knowledge tradition and national spirit. This is our nationality.

This is what gives us new energy and vibrancy with the inspiration of being Bhartiya. This is an ocean of sensations. Taking this ocean to heart, we will have to contribute our 100 percent towards the Indian nation, only then we will be able to establish justice towards the nation and every Bhartiya.

Bhartiya nationalist poets call for such heroes who sacrifice their lives for the service of the nation, who always remain in the front line for the service of the country by getting emotionally attached to the motherland. The call of such brave men is going to take the country on the path of progress and development. If the country has to develop, every person will have to contribute his 100 percent. We will have to move forward with the spirit of sacrificing everything for the motherland.

Calling upon us to have a self-motivated, self-disciplined and self-cultured spiritual consciousness which helps in the development journey of the organization while being disciplined by the mother, motherland and mother tongue, and to remain happy even in adverse circumstances and sacrifice everything for the nation. Work will have to be done taking the feelings into consideration.

Being Bhartiya, I inspire people to sacrifice everything for the country and appeal to the Bhartiya people to always remain dedicated to the unity, sovereignty and integrity of the country. This is the true national religion. Religion is supreme.

गुरुवार, 21 सितंबर 2023

वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की उपादेयता -डॉ. चंद्रकांत तिवारी उत्तराखंड प्रांत

 वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की उपादेयता - 

डॉ. चंद्रकांत  तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 

 गुरुवार, 21 सितंबर

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस 

---------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------


सर्व शान्ति: 

शान्तिरेव शान्ति:

सा मा शान्तिरेधि

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

यजुर्वेद के उपर्युक्त इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना की गई है।

मनुष्य प्रकृति की देन है जीवन अमूल्य है सुख शांति यश और वैभव के लिए मानव सभ्यता को शांति स्थापित करते हुए सतत विकास की संभावनाओं को अपनाते हुए सृजनात्मक कार्यों में अपना समय पूर्ण व्यतीत करना चाहिए।

वैश्वीकरण के इस दौर में युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन, पर्यावरणीय असंतुलन संपूर्ण विश्व के समक्ष प्रमुख चुनौती है। इसलिए वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शांति एवं भाईचारे की स्थापना करना भी है। आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चाल से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता।

विश्व शांति को लेकर भारत दुनिया के सबसे रिस्पॉन्सिबल देश के तौर पर देखा जाता है। आजादी के संघर्ष के समय से लेकर आजादी के बाद और आज के दौर तक भारत दुनिया के देशों के बीच हर प्रकार की शांति के लिए प्रयासरत रहा है। आज यूनाइटेड नेशन की पीस कीपिंग आर्मी में तीसरा सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन भारत का है।

यह शान्ति धर्ममूलक है। धर्मों रक्षित रक्षितः-ऐसा प्राचीन संदेश विश्व का अस्तित्व और रक्षा के लिए ही प्रेरित है। इसका मुख्य उद्देश्य, व्यक्ति, समाज और राष्ट्रों को आपसी द्वेष, असंतोष आदि से दूर कर शान्ति, सहिष्णुता आदि का पाठ पढ़ाना है।

वैश्विक शांति की स्थापना हेतु प्रतिवर्ष 21 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस या ‛विश्व शांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसकी घोषणा 1981 में की गई तथा 1982 में पहली बार ‛अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाया गया। 1982 से 2001 तक अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस सितंबर माह के तीसरे मंगलवार को मनाया जाता था लेकिन सन 2002 से 21 सितंबर को ‛अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ मनाने की तारीख निर्धारित की गई। इसका प्रमुख उद्देश्य है अहिंसा और संघर्ष विराम का अवलोकन करते हुए शांति के आदर्शों को मजबूत करना। संयुक्त राष्ट्र संघ कला, साहित्य, सिनेमा संगीत एवं खेल जैसे क्षेत्रों से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए शांति दूतों की नियुक्ति भी करता है। इस दिवस को सफेद कबूतर उड़ाकर शांति का पैगाम भी दिया जाता है।

संप्रदायवाद एवं आतंकवाद वैश्विक शांति के समक्ष सबसे बड़े अवरोधक हैं। विविध प्रकार की आतंकी गतिविधियों से दुनिया के किसी न किसी कोने में हर रोज अस्थिरता देखने को मिलती है। हिंसा से हिंसा बढ़ती है, 'घृणा', घृणा को जन्म देती है और प्रेम से प्रेम की अभिवृद्धि होती है। अतः यह निश्चित है कि बिना प्रेम और अहिंसा के विश्व में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती। शान्ति के अभाव में मानव जाति का विकास सम्भव नहीं।

आज विश्व के सभी धर्म, संप्रदाय, पंथ और आध्यात्मिक आस्था वाले समूहों में समन्वय की आवश्यकता है। अब परंपराओं और सिद्धांतों का सार लेकर रहन सहन के स्वस्थ तौर-तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है। आज सामाजिक संगठन की सबसे छोटी इकाई परिवार के पुनर्गठन की भी आवश्यकता है जोकि सदैव मानव की प्राथमिक पाठशाला रही है।

वर्तमान विश्व युद्ध, संघर्ष, पलायन, महामारी एवं पर्यावरण संकट जैसी अनगिनत समस्याओं का सामना कर रहा है। वर्तमान विश्व को सशंकित दृष्टि से देखते हुए इतिहासकार युवाल नोआ हरारी अपनी पुस्तक ‛21 Lessons for the 21st Century’ में कहते हैं कि, “अपनी प्रजाति को संगठित करने के लिए हमने मिथक रचे। खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए हमने प्रकृति को वश में किया। अपने विचित्र उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हम जीवन की पुनर्रचना कर रहे हैं। लेकिन क्या हम अब भी खुद को जान पाए हैं या हमारे आविष्कार हमें अप्रासंगिक बना देंगे?

विश्‍व शांति का अर्थ केवल हिंसा न होना नहीं है, बल्कि ऐसे समाजों का निर्माण है जहां सभी को यह अहसास हो कि वे आगे बढ़ सकते हैं और फल-फूल सकते हैं. हमें एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जहां सभी के साथ उनकी जाति, नस्‍ल, धर्म की परवाह किए बिना समान व्यवहार किया जाए. 1981 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिन, मानवता के लिए सभी मतभेदों से ऊपर उठने, शांति के लिए प्रतिबद्ध होने और शांति की संस्कृति के निर्माण में योगदान करने का दिन है।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। यह पंचसूत्र, जिसे 'पंचशील' भी कहते हैं, मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं।

 इसके अंतर्गत निम्नलिखित पाँच सिद्धांत निहित हैं-

1- एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।

2- एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई न करना।

3- एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।

4- समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।

5- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।

माना जाता है अगर विश्व उपर्युक्त पाँचों बिंदुओं पर अमल करे तो हर तरफ़ सुख शांति समृद्धि होगी।

वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए अब तक अनगिनत प्रयास किए गए हैं। स्टॉकहोम सम्मेलन(1972) से लेकर ग्लासगो(2021) तक सतत प्रयास इसके प्रमुख उदाहरण हैं। दुनिया भर को परमाणु खतरों से बचाने के लिए अब तक पीटीबीटी(1963), एनपीटी(1968) तथा सीटीबीटी(1996) जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण संधियाँ की गई हैं। युद्ध की परिस्थितियों तथा हथियारों की होड़ को खत्म करने के लिए निशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण जैसी अवधारणाएं काम कर रही हैं। 

असंतुलित आर्थिक विकास भी संपूर्ण विश्व के समक्ष एक प्रमुख चुनौती है। अंधाधुंध औद्योगीकरण ने पर्यावरण असंतुलन को जन्म दिया है जोकि वैश्विक शांति की स्थापना में बाधक है।

लंबे उपनिवेशवादी दौर से मुक्त हुई दुनिया के समक्ष आज भी साम्राज्यवाद, बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद की गंभीर चुनौती है जिसने गहरे असंतोष को जन्म दिया है। हथियारों की होड़ ने सम्पूर्ण विश्व को अब बारूद के मकान के रूप में तब्दील कर दिया है। हथियार निर्माण अब एक उद्योग का रूप ले चुका है जिसका उद्देश्य वैश्विक तनाव निर्मित कर हथियार बेचना है। रूस-यूक्रेन युद्ध समकालीन दुनिया का एक नग्न यथार्थ है कि विज्ञान एवं तकनीकी विकास के साथ हम आज भी युद्धों में उलझे हुए हैं। युद्ध और आंतरिक विघटन से पलायन की समस्या उत्पन्न हो रही है जिससे शरणार्थी समस्या समस्त विश्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है।

शिक्षा में मानव सभ्यता का विकास है सकारात्मक और नैतिक मूल्य से संपन्न शिक्षा मानव चरित्र का आदर्श स्थापित करती है शिक्षा में समग्र मानव कल्याण की भावना शांति शिक्षा के रूप में पाठ्यक्रम में समाहित होनी चाहिए। क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य मानव कल्याण ही है और चरित्रवान व्यक्तित्व का निर्माण करना भी।

पाठ्यक्रम में ऐसी विश्व शांति संबंधी शिक्षा की परिकल्पना को स्थापित करते हुए विद्यालयी शिक्षा को नया आकार और रूप दिया जा सकता है। ऐसी व्यापक और समावेशी लोक हितकारी शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्यों में क्रमशः -

(1) व्यक्तियों का उचित बौद्धिक और भावनात्मक विकास हो सकेगा।

(2) सामाजिक जिम्मेदारी और एकजुटता की भावना विकसित हो सकेगी ।

(3) सभी के प्रति समानता और भाईचारे के सिद्धांतों का पालन किया जा सकेगा।

 (4) व्यक्ति की आलोचनात्मक एवं तर्कशील समझ विकसित एवं सक्षम बनाया जा सकेगा

उपर्युक्त शांति शिक्षा की अवधारणा काफी व्यापक और वास्तव में सकारात्मक एवं सृजनात्मक है। शांति शिक्षा की आवश्यकता और महत्व अपरिहार्य है । क्योंकि इसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे के साथ शांति से रहना सिखाना है। यह हिंसा को हतोत्साहित करता है और समानता को बढ़ावा देता है। विश्व बंधुत्व की भावना का विकास करता है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्‍व शांति का अर्थ केवल हिंसा न होना नहीं है, बल्कि ऐसे समाजों का निर्माण है जहां सभी को यह अहसास हो कि वे आगे बढ़ सकते हैं और फल-फूल सकते हैं. हमें एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जहां सभी के साथ उनकी जाति, नस्‍ल, धर्म की परवाह किए बिना समान व्यवहार किया जाए।

वैश्विक शांति स्थापित करने में भारत सदैव अग्रणी देशों में शामिल रहा है। प्राचीन काल से ही शांति एवं सद्भाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं रही हैं। भारत अनेक धर्मो की जन्मस्थली है। इन धर्मों ने दुनिया भर में शांति एवं मानवता का संदेश दिया। “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा हिंदू धर्म की प्रभु प्रमुख विशेषता रही है। बौद्ध एवं जैन धर्म ने दुनिया भर में अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह का पाठ पढ़ाया। सल्तनत काल, मुगल काल एवं ब्रिटिश काल में भी भारत ने सहिष्णुता को ही बढ़ावा दिया। भारत ने बाहर से आयी संस्कृतियों को भी अपने में समाहित किया। विभिन्न धर्मों के असंख्य संप्रदायों ने भी सदैव शांति एवं सद्भाव स्थापित करने की दिशा में न सिर्फ सैद्धांतिक विचारों का प्रतिपादन किया बल्कि सक्रियतापूर्वक आम जनमानस में उसका प्रचार प्रसार भी किया। उपनिवेशवाद के दौर में भी भारत ने रचनात्मक तरीके से संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण आखिर कौन भूल सकता है? पराधीनता की स्थिति में भी यहां के विद्वानों ने न सिर्फ भारतीय समाज को जागृत किया बल्कि उनका असर पूरी दुनिया पर पड़ा। महात्मा गाँधी और उनका चिंतन मुख्य रूप से सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के तरीके पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं। महात्मा गाँधी के अहिंसक आंदोलन ने कई पराधीन देशों में स्वतंत्रता की अभिलाषा उत्पन्न की और उनके साधन अनेक देशों को स्वाधीनता प्राप्ति में सहायक साबित हुए। नेल्सन मंडेला जैसे लोगों को स्वाधीनता प्राप्ति की प्रेरणा और आत्मबल गाँधी से ही मिला। आज गाँधी की ‛सर्वोदय’ की अवधारणा समस्त विश्व के समक्ष विकास का एक समावेशी मॉडल है। 

वर्तमान दौर में हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं। यह दुनिया एक गाँव के रूप में तब्दील हो गई है जिसे मैकलुहान ने “ग्लोबल विलेज” की संज्ञा दी है। एक प्रक्रिया और प्रवाह के रूप में वैश्वीकरण ने दुनिया को एक दूसरे से जोड़ते हुए अंतरनिर्भरता को बढ़ावा दिया है। वैश्वीकरण के इस दौर में युद्ध, असंतोष, अवसाद, पलायन, पर्यावरणीय असंतुलन संपूर्ण विश्व के समक्ष प्रमुख चुनौती है। इसलिए वर्तमान विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता शांति एवं भाईचारे की स्थापना करना है। 

आज प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है। मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।

संदर्भ - wikipedia-org

bharatdiscovery.org

hindicurrentaffairs.adda

---------------------------------------------------------------

---------------------------------------------------------------

शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

देव-मंदिर प्रकृति के अंश मात्र बिंब...! डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत

देव-मंदिर प्रकृति के अंश मात्र बिंब...!

डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढत बन माहि ।

ज्यो घट घट राम है, दुनिया देखे नाही ।

कबीर दास जी ने ईश्वर की महत्ता बताते हुये कहा है कि कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है ,लेकिन इससे वो अनजान हिरन उसके सुगन्ध के कारण पूरे जगत में ढूँढता फिरता है ।ठीक इसी प्रकार से ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में निवास करते है, परन्तु मनुष्य इसें नही देख पाता । वह ईश्वर को मंदिर ,मस्जिद, और तीर्थस्थानों में ढूँढता रहता है ।

कबीर ने अन्यत्र भी कहा है कि -

मोको कहां ढूंढे रे बंदे,

मैं तो तेरे पास में ।

ना मंदिर में, ना मस्जिद में,

ना काबे कैलाश में ।

मैं तो तेरे पास में ।

निस्संदेह देव मंदिर आस्था के आध्यात्मिक केंद्र हैं। मनुष्य अपनी निष्क्रिय पड़ी हुई आध्यात्मिक चेतना को जगाने के लिए आस्था के केंद्र मंदिरों का भ्रमण करता है। परंतु आध्यात्मिक चेतना के लिए भक्तिमय होकर अपने आराध्य देव को ढूंढने का प्रयत्न करता है।

अनुभूति की अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की अनुभूति ही आध्यात्मिक चेतना है। मंदिर वह पवित्र स्थान है जहांँ दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है। 

उत्तराखंड देवभूमि स्थान-स्थान पर देवी-देवताओं के मंदिरों से पवित्र भूमि का वरण करती है। यहांँ हिमालय से निकलने वाली मोक्षदायिनी मांँ गंगा शिव जटाशंकर त्रिदेवपुरी को भी नित-नित पावन करती है। यहांँ भक्ति पत्थर, मृदा,घाट, जल, वृक्ष, पहाड़ कई रूपों में दिखेगी। यह सभी स्थानीय पूजनीय स्थल हैं। 

भक्ति का स्वरूप तो सगुण और निर्गुण है। किसी ने मूर्तियों में अपने ईश्वर की तलाश कर ली और किसी को प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का रूप दिखाई देता है । परंतु ईश्वर कहांँ है ? हम ईश्वर की तलाश क्यों करते हैं ? हम मंदिर क्यों जाते हैं ? यह स्वयं में शोध का विषय है। क्योंकि मनुष्य स्वयं की तलाश करते-करते एक ऐसे एकांत की तलाश करता है जो विभिन्न संस्कृतियों का नादमय सौंदर्य है और ऐसा सौंदर्य जो एकांत के उपजता है और पनपता है । मनुष्य को अकेला ना होकर एकांत प्रिय होना चाहिए। क्योंकि एकांतप्रिय सृजनात्मकता का प्रतीक है। नवाचार का प्रतीक है। तभी वह अपने ईश्वर की तलाश कर सकता है । हालांकि मंदिर की संरचना अपने आप में अलग है। नि:संदेह मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थान है जहांँ हम सभी स्वार्थ भावनाओं से ऊपर उठकर परमार्थ की तलाश करते हैं अर्थात आत्म साक्षात्कार करते हैं।

प्रकृति सभी की जीवन सहचरी है। आधार स्थली है। यह सभी का साक्षात्कार करती है, अपने मौन प्रश्नों से। जिसके उत्तर लिखित कम प्रायोगिक अधिक हैं। 

प्रकृति ही ईश्वर है। देव-मंदिर प्रकृति के अंश मात्र बिंब...!

व्यंग्य की तलाश भाग -४ डॉ. चंद्रकांत तिवारी- उत्तराखंड प्रांत

 व्यंग्य की तलाश - भाग - ४

डॉ. चंद्रकांत तिवारी - उत्तराखंड प्रांत 

व्यक्ति के कर्मों की ध्वनि शब्दों से ऊंची होती है। घर दीवारों और ईट गारे से ही निर्मित नहीं होता है। घर तो बनता है मन की समृद्धि से। घर की समृद्धि से कहीं अधिक मन की समृद्धि बहुत बड़ी चीज है। मन की समृद्धि के लिए दूसरे के सुख में अपने सुख को तलाश करना पड़ेगा और दूसरे के दुख में सहभागी बनना पड़ेगा। कुल मिलाकर समृद्धि का भाव तभी जागृत होगा जब सुख के साथ-साथ दुख का भी बराबर में हिस्सा हो। दूसरे के तवे में रोटी सेंकने का भाव त्यागना होगा तो वहीं बहती गंगा पर डुबकी मारने का विचार कर्तव्यबोध से विमुख बनाता है। हमें राजनीति के जंगल में घुसकर दंगल करने की आवश्यकता नहीं। राजनीति घने जंगल का रास्ता है जिसमें साधारण व्यक्ति अपने घर का मार्ग तलाश कर रहा होता है। जीवन एक फूल है और प्रेम उसकी सुगंध। हम जैसे फूल उगाएंगे हमें वैसी सुगंध मिलेगी। हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां नागफनी के कांटे हैं तो गुलाब के फूल भी हैं। हमारे गुलाब में कांटे भी हैं परंतु यह कांटे गुलाब की रक्षा के लिए ही होते हैं। प्रकृति ने हर खूबसूरत वस्तु को नैसर्गिक सुरक्षा प्रदान की है। परंतु हमें काले और गोरे रंग का भेद नहीं करना चाहिए। प्रकृति में भी काली और गोरी नदियां बहते हुए संगम में एक साथ पुनः मिल जाती हैं। बड़े-बड़े महासागरों में गर्म और शीतल जलधारा आपस में मिलकर कई जीवों का निवास स्थान होती हैं। परंतु जीवन का एक सत्य यह भी है कि छोटी मछलियां बड़ी मछलियों का ही आहार बनती हैं। राजनीति भी समुद्र की उस मछली के समान है जिसको हजम करना इतना आसान नहीं है। देश को चलाना साधारण व्यक्ति का असाधारण कार्य होता है। असाधारण होने के बाद भी व्यक्ति साधारण बना रहे तो वही व्यक्ति देश का नेतृत्व और संपूर्ण विश्व में प्रेम और आदर्श स्थापित कर सकता है।

क्रमशः...