*आंखों पर हिमालय* * भाग-2
© डॉ. चंद्रकांत तिवारी
बर्फीली चोटियां किसका मन नहीं मोहती। कौन है जो बरसात के सुखद आनंद को ना लेना चाहे। हरी घास पर नंगे पैर दौड़ना और कल-कल करती हुई नदियों पर दोनों हाथों से एक दूसरे पर हवाओं में पानी उछालना, छोटे गोल-गोल पत्थरों को प्यार से सहलाते हुए किसी मां का शिशु को सुलाते हुए- सा वात्सल्य प्रेम का अनुभव करना, ऊंचे घने देवदार के वनों को देर तक निहारना और उसकी हरियाली से अपने मन को और हरा करना, चीड़ के जंगलों में घंटों सांए-सांए की आवाज को सुनते रहना, ऊंचे पर्वतों पर जीवन की ऊंचाइयों को छूने की कल्पना करना और काले घने मदमाते हुए जल से भरे बादलों के स्पर्श को अनुभव करना किसी भी व्यक्ति को अपनी और आकर्षित कर सकते हैं। अपने आप में सम्मोहित करने की शक्ति रखता है यह परिवेश। यह हिमालयी प्रदेश इसकी नैसर्गिकता, इसकी खूबसूरती, यहां की ऋतुएं, यहां की रातें और यहां भोर का उजाला जीवन का एकमात्र एकांत है प्राकृतिक शक्तियों का महाकुंज, जो जीवन जीने की कलात्मक गतिविधियों को केंद्रित करता है। यही संस्कृति का नादमय संगीत है। यही लोक संस्कृति का उत्थान मंच है। यही क्षेत्रीय एवं प्रांतीय लोगों की बहुमूल्य विरासत का समुच्चय है। यही प्राकृतिक संपदा का एकमात्र अक्षय भंडार है। यही सादा जीवन उच्च विचार का आधार भी है।
विश्व की अधिकांश सभ्यताओं का केंद्र नदी घाटी ही रहा है या तो पर्वतीय प्रदेश। जहां नदियों के किनारे बसने वाले नगर प्रांतों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण व्यापक स्तर पर हुआ है। वहां पारंपरिक मानव विरासत की सभ्यता के चिन्ह आज भी मिलते हैं। पर आंकड़े यह भी बताते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता का उद्गम और विकास नदियों के विकास से ही संभव हुआ है। स्रोतवाहिनी ही जीवनदायिनी बनकर मानव का कल्याण करती आई और आज भी कर रही है। भगीरथ ने तप द्वारा गंगा को धरती पर उतारा और गंगा पर्वतीय प्रदेशों से होते हुए अपनी शीतल धारा को मैदानी भागों की ओर इस तरह लेकर पहुंची की समूचा तराई क्षेत्र शीतलता की जीवनदायिनी शक्ति का आजीवन ऋणी हो गया। यह सभ्यता का प्रारंभिक इतिहास है। इसी प्रकार पर्वतीय प्रदेशों का विकास वहां प्रचलित स्थानीय सभ्यताओं द्वारा विकसित हुआ है। विश्व की हर कोई सभ्यता स्थानीय संसाधनों एवं भौतिक परिवेश से ही निर्मित होती है और लोक प्रचलित होते हुए विविध तरीकों से जीवन को केंद्रित करती है। यह सभ्यता मानवीय जीवन की नैसर्गिक प्रवृत्ति है और जीवन जीने की सहज एवं सरल अभिव्यक्ति है। इस प्रकार पर्वतीय अंचल जो हिमालय की गोद में बसा है यहां की सभ्यता रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, लोक-बोली, लोक-साहित्य, लोक-गाथाएं, जल, जमीन और जंगल के गीत गाती है। हालांकि यहां चुनौतियां अपार है। परंतु इन्हीं चुनौतियों को स्थानीय संसाधनों के द्वारा स्वीकार करते हुए यहां की जीवन शैली को रोचकता से जिया जाता है। मध्य हिमालयी क्षेत्र जिसे हम पहाड़ की संज्ञा देते हैं कई संभावनाओं को अपनी गोद में समेटे हुए मानवता के आदर्श शिखर पुरुष की तरह खड़ा है। सच में अपनी आंखों से हिमालय को देखना साक्षात दिव्य दर्शन करने के समान है।
मध्य हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड जिसकी नैसर्गिक छटाएं हर प्राणी का हृदय मोह लेती हैं। वशीकरण की शक्ति है यहां के प्राकृतिक वातावरण में। जो नयनों को शीतलता और प्रभु दर्शन का आशीर्वाद प्रदान करती है। पशु-पक्षी, जीव-जंतु और मानव समाज यहां की प्रकृति के अंग हैं। यहां बसने वाले हर प्राणी को प्रकृति अपने भीतर सहेजने के अनुभवों का मार्ग दिखाती है। कहने का तात्पर्य है कि प्राकृतिक परिवेश एवं उसकी नैसर्गिक संपदा यहां के लोगों का निवास है।
पर्वत के ऊंचे-नीचे ढालों में बने पहाड़ी मकान, यहां के देवदार के वृक्ष, चीड़ के वृक्ष, बांज और बुरांश के वृक्ष और हरी घास के मैदान, ऊंची-नीची घाटियां और इन घाटियों में बहते बड़े-बड़े नाले जिनको स्थानीय भाषा में गधेरे अर्थात छोटी नदी के रूप में संबोधित किया जाता है, गधेरों की ध्वनि मन की अतल गहराइयों में न जाने कितने असंख्य आकर्षणों को प्राकृतिक परिवेश के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए प्रकट कर देती हैं। यह साक्षात अनुभव करके ही प्राप्त किया जा सकता है।
यहां की प्रकृति में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति पर्वत पुत्र है। हिमालय की किरणें उसके आंगन में खेलती हैं। यहां की सुबह और यहां की शाम प्रकृति की विभिन्न गतिविधियों से केंद्रित आचरण को जीवंत करती रहती हैं। यहां की लोक बोलियां एवं लोक साहित्य, लोक गाथाएं अपना एक विशेष व्यापक अध्ययन क्षेत्र है। जीवन जीने की प्राकृतिक कला है और स्थानीय लोगों के धार्मिक एवं सांस्कृतिक उल्लास का प्रतीकात्मकता के साथ-साथ साक्षात् जीवन अनुभव भी है। यही साक्षात् अनुभव व्यक्ति को उसके संस्कारों से, उसके समाज से, उसके लोक परिवेश से, उसके स्थानीय संसाधनों से, उसकी आत्मा से, उसके घर से, उसके माता-पिता से, उसके रिश्तेदारों से, उसके जाति-बंधन से और उसके पैतृक निवास से, उसके खेतों से, उसके पेड़-पौधे और वृक्षों से और उस घास के हरित तिनके से जोड़ता है, जिसको देखकर वह हरपल आनंदित होता है। हिमालयी क्षेत्र की अपनी विशेषता है। यहां की मिट्टी में भी औषधियों के अपार गुण हैं। यहां के मौसम, यहां की फसलें और यहां का पर्वतीय समाज किसी भी समुदाय के पक्ष-विपक्ष को अपनी कार्यशैली-शक्ति-प्रदर्शन से अपनी ओर आकर्षित कर ही लेता है।
हम हिमालय के आंगन में हैं और हमारी आंखों पर हिमालय है।
आंखों पर हिमालय, सभ्यता के मुहाने
बर्फीली चोटियों पर, बनाते हैं घराने।
©डॉ चंद्रकांत तिवारी
fb-Chandra Tewari
July 2021