विरासत के आयाम-
©डॉ. चंद्रकांत तिवारी-उत्तराखंड प्रांत
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भारत की सांस्कृतिक परंपरा की पृष्ठभूमि की नींव में भारतीयता विद्यमान है। भाषा, साहित्य और संस्कृति किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। यह राष्ट्र को नींव के पत्थर की तरह मजबूत आधार प्रदान करती है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा प्रत्येक हृदय में राष्ट्रवादी भावनाओं को लेकर निर्मित होती रही है और होती रहेगी। यह संस्कृति हमें राष्ट्र की मिट्टी से जोड़ती है और जो समाज मिट्टी की सुगंध से निर्मित होता है वही अपने राष्ट्र से प्रेम करता है। उसकी संस्कृति वर्षों तक वैश्विक स्तर पर गूंजती है।
भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। जिसकी विविधता और समृद्धि सांस्कृतिक विरासत में निहित है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत शिक्षा, चिकित्सा और कृषि में धीरे -धीरे आत्मनिर्भर बन रहा है।अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी भारत की गिनती की जाती है।आज भारत शेष एशिया महाद्वीप से अलग दिखता है। जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालयी संपदाओं से घिरा है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सीमा को निर्धारित करते हैं।
भारत की राष्ट्रीयता की व्यापकता, एक आधार वाक्य है। जिसके कारण देश को मात्र एक राष्ट्र-राज्य के रूप में देखने के बजाए बड़ी विश्व सभ्यता की आधार शिला के रूप में देखा जाता है।
प्राचीन समय से ही, भारत की आध्यात्मिक भूमि ने संस्कृति धर्म, जाति, भाषा इत्यादि विविध आयामों को प्रदर्शित किया है। जाति, संस्कृति, धर्म इत्यादि की यह विभिन्नता अलग-अलग धर्मों और सम्प्रदायों, जातीय वर्गों, के अस्तित्व की गवाही देती है, जो यद्यपि एक राष्ट्र को नियंत्रित करती है। भारत की आंतरिक विभिन्न बोलियां, क्षेत्रीय सीमाएं, इन जातीय वर्गों, संस्कृतियों, परिवेश को उनकी अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान के आधार पर भेद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जीवन के यथार्थ दृश्यों को हम किस रूप में देखते हैं, किस रूप में महसूस करते हैं, महसूस करने के बाद क्या हम उन साक्षात दृश्यों/वस्तुओं से अपनेपन का लगाव रख पाते हैं? ऐसा लगाव जो हमें बार-बार अपनी ओर आकर्षित करता हो। हमारे मन की रिक्तता को पूर्ण करता हो। हमारे जीवन के अवकाश को इंद्रधनुषी रंगों से भर देता हो। हमारी विषम और कठिन बनती जा रही जीवनशैली को सरल और सहज बना देता हो। हमारी कम पड़ती श्वांसों के मध्य रक्त का संचार करता हुआ जीवन की लालिमा के नए दृश्यों को उभरता हो।
भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम है। भारत की संस्कृति का मूल आधार विभिन्नता में एकता, सर्वधर्म समभाव की संस्कृति की परंपरा का द्योतक होना है। एक भाषा ने यहां सबको एक सूत्र में स्थापित किया है। वह है हिंदी जिसे बहुसंख्यक लोग बोलते हैं और उसे भारत की राष्ट्रभाषा मानते हैं। इस राष्ट्रभाषा ने भारतवासियों को सांस्कृतिक परंपरा और यहां के साहित्य से जोड़ कर रखा है। लेकिन हिंदी राजभाषा है तथा भारत के अधिकांश नगरों व शहरों में बोली जाती है। प्रत्येक भाषा अपने प्रांत, अपने राष्ट्र की, अपनी सांस्कृतिक विरासत की पहचान होती है। यही संस्कृति और परंपरा का सेतु भी।
हिमालय से हज़ार गंगा निकलती हैं। हिमालय के विशाल अमृत सागर से हजार धाराएं लोक मानस के कंठ को भिगोती हैं। दिव्य हिमालय सा सतगुरु का व्यक्तित्व होता है। विशाल हिमालय से असंख्य धाराएं जब निकलती हैं तो विद्यार्थी की तरह निर्मल समाजसेवी बनकर भावी समाजिक परिधि को गति प्रदान करने में सक्षम होती हैं।
गीता में कर्म योग का संदेश मनुष्य को भौतिक जगत में जीने की प्रेरणा देता है। आज संपूर्ण समाज के समक्ष अगर कोई व्यक्ति बुरी आत्माओं की परिधि में स्वयं कैद हो जाता है तो गीता का संदेश उसका मार्गदर्शन तय करता है। यह वही संदेश है जो अर्जुन जैसे गांडीवधारी वीर धुरंधर योद्धा को रणक्षेत्र में अग्निकुंड के समान वीर पुरुष बना देता है। यह भारतीय चिंतन परंपरा का ही ज्वलंत प्रमाण है कि व्यक्ति लक्ष्य विहीन होने के बावजूद भी सकारात्मक जीवन दृष्टि को धारण करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होता है। यह साधारण बात तो है परंतु इस साधारण बात के भीतर भारतीय चिंतन परंपरा की असाधारणता गहराई से अपनी जड़े जमाई हुई है।