सोमवार, 31 जनवरी 2022

सेना के प्रति - ©चंद्रकांत

यह रक्त नहीं अभिमान का 

मां के दूध का कर्ज निभाना है

हर मानक पर खरा उतरना है

साहस का परचम लहराना है।


शरीर के मानक से भी बढ़कर

मन के मानक होते हैं

पर मन ही सब कुछ हार गया तो

हम साहस का पथ भी खोते हैं।


अभिमन्यु का रणकौशल

हर मानक पर खरा उतरता था

शरीर बड़ा या सोच बड़ी

द्वंद यहां भी होता था

कर्ण-एकलव्य का दृढ़ संकल्प

जीत का केवल मात्र विकल्प।


नित-नित कर्मों की शिक्षा से

कर्ण- एकलव्य ने मान बढ़ाया था

गुरुकुल के मानक के अनुरूप 

ख़ुद का मानक अपनाया था

गुरु द्रोण का पार्थ - शिष्य

अर्जुन ने संग्राम मचाया था।

महाभारत के महा-समर में

दृढ़-संकल्प का मानक अपनाया था।


वीर कर्ण की यश गाथा

सदियों तक मुंह-जवानी है

दानवीर की दान कथा

महाभारत की व्यथा पुरानी है

दृढ़ इच्छा, कर्म-संघर्ष जहां

पथ-यश है - वैभव की महारानी वहां।


वीर सैनिकों याद रहे 

हर मानक से बढ़कर यहां

साहस ही नई कहानी है।

रणभूमि है यह विवेकहीन कोई बात नहीं

ऊंचे पर्वत-गहरी घाटी-बर्फीली चट्टानें हैं

आर-पार का युद्ध यहां

मन का साहस बढ़ता है

जंग के मैदानों पर यौवन यहां गड़ता है।

विश्व फलक की यशगाथा में

तिरंगे का मानक बढ़ता है।

©चंद्रकांत 

दिनांक - (31- जनवरी-2022)

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